लखनऊ,(यूएनएस)।सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन का जन्म दिन पांच सितंबर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे शिक्षक होने के साथ महान दार्शनिक, उत्कृष्ट वक्ता और विचारक थे। वे विश्व को शिक्षा का घर मानते थे। गुरु बिन ज्ञान की कल्पना भी बेमानी है। जीवन में आगे बढ़ने की सही राह अगर कोई दिखा सकता है तो वो सिर्फ गुरु यानि शिक्षक ही है। उन्होंने अपने जीवन के 40 वर्ष अध्यापन के पेशे को दिया। हम उनकी स्मृति में हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाते हैं। कुछ शिक्षकों के मन के तार छेड़े तो बहुत गम्भीर और ग्राह्य बातें निकलीं।
कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय के प्रवक्ता विनोद कुमार मिश्रा का कहना है कि हमारे समाज में गुरु-शिष्य परंपरा सनातन से चली आ रही है। इसको शिक्षक दिवस के रूप में प्रतिवर्ष 5 सितंबर को मनाया जाता है। यही वह दिवस होता है जब हम न केवल अपने गुरुओं को आदर और धन्यवाद देते हैं बल्कि उनके द्वारा दिए गए ज्ञान, अनुशासन और मार्गदर्शन का महत्व समझते हैं। शिक्षक ऐसा दीपक है, जो स्वयं जलकर शिष्यों को प्रकाशित करता है। माता-पिता प्रथम शिक्षक होते हैं, परंतु जीवन जीने का असली ज्ञान हमें अपने गुरुओं से ही मिलता है। भारत का पूरे विश्व में किसी भी व्यक्ति को ऊंचाइयों तक ले जाने का श्रेय शिक्षक का ही होता है। शिक्षक ऐसा माली है, जो शिष्य रूपी फूलों को महकाने का काम करता है। समाज में गुरुओं का अपने शिष्यों में अच्छे चरित्र निर्माण का योगदान होता है।
भातखंडे संस्कृत विश्वविद्यालय के नरेंद्र मृदुल कहते हैं कि जब हमारे जीवन में शिक्षक की बात आती है तो प्रथम गुरु मेरे माता-पिता ही होते हैं, जो हमारे जीवन में उपयोगी तथ्यों को बताते हैं। हमें अपने से बड़ों से कैसे व्यवहार करना है, क्या नैतिकता बरतनी है, क्योंकि जीवन जीना भी एक कला है। जिसे जीवन जीना नहीं आया तो उसका मानव जीवन पाना ही व्यर्थ है। जब हम विद्यालय जाने के योग्य हो जाते हैं, तभी हमारे जीवन में एक शिक्षक रूप में प्रकाश का उदय होता है, और वह शिक्षक वही गुरु हमारी समस्याओं का समाधान करने में सक्षम होते हैं।