पेंशन व्यवस्था पर देश में पिछले कुछ दशकों से एक महत्वपूर्ण बहस चल रही है, जिसमें विभिन्न सरकारों की नीतियों और निर्णयों पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ है। इस बहस में पेंशन को कर्मचारियों के लिए एक आवश्यक अधिकार के रूप में देखा गया है, जो उनकी लंबी सेवा और वफादारी का प्रतिफल है। हालांकि, पेंशन व्यवस्था को लेकर विभिन्न सरकारों के रवैये और उनके द्वारा अपनाई गई नीतियों ने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया है।

पेंशन व्यवस्था का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

आजादी के समय, जब भारत में जीवन प्रत्याशा कम थी, तब पेंशन की अवधारणा का ज्यादा महत्व नहीं था। लेकिन समय के साथ, जीवन प्रत्याशा में वृद्धि होने के कारण पेंशन का महत्व भी बढ़ा। 1947 में जीवन प्रत्याशा 35 वर्ष से भी कम थी, जो आज 70 वर्ष से अधिक हो गई है। इस बदलाव के साथ, पेंशन की जरूरत और उसके लिए जिम्मेदारी बढ़ी है।

जनवरी 2004 में, तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने पुरानी पेंशन योजना (OPS) को समाप्त करके नई पेंशन योजना (NPS) को लागू किया। यह परिवर्तन एक बड़ा कदम था, जिसने पेंशन व्यवस्था के दो प्रमुख स्तंभों—गैर-अंशदायी योजना और न्यूनतम पेंशन की अवधारणा—को हिलाकर रख दिया। NPS को अंशदायी योजना में बदल दिया गया, जहां सरकार और कर्मचारी दोनों के योगदान से पेंशन फंड का निर्माण होता है। हालांकि, NPS में न्यूनतम पेंशन की कोई गारंटी नहीं है, जिससे इसे आलोचना का सामना करना पड़ा।

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने NPS को लागू करने के बाद पीछे हटने से इंकार कर दिया, और उनके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इस पर कोई पुनर्विचार नहीं किया। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भी सरकार ने NPS को जारी रखा, हालांकि इस पर भी कुछ विवाद उठते रहे।

2024 के लोकसभा चुनाव के परिणाम ने पेंशन की बहस को नया मोड़ दिया। केंद्र सरकार के पेंशनभोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे पेंशन पर सरकारी व्यय भी बढ़ रहा है। एनपीएस के अंतर्गत 2023 तक करीब 23.8 लाख केंद्रीय कर्मचारी और 60.7 लाख राज्य सरकार के कर्मचारी थे।

हाल ही में, एक नई योजना—एकीकृत पेंशन योजना (UPS)—का प्रस्ताव आया है, जिसमें सरकार और कर्मचारी दोनों का योगदान बढ़ाया गया है। यह योजना न्यूनतम पेंशन की गारंटी देती है और इसे मुद्रास्फीति के अनुसार समायोजित किया जाएगा। UPS की अंतिम रूपरेखा अभी तक स्पष्ट नहीं है, और इस पर राज्य सरकारों और विभिन्न राजनीतिक दलों का रुख आना बाकी है।

पेंशन व्यवस्था पर चल रही यह बहस न केवल सरकारी कर्मचारियों के भविष्य से जुड़ी है, बल्कि इससे देश की आर्थिक स्थिरता भी प्रभावित होती है। पेंशन की मौजूदा व्यवस्था और उसके सुधारों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है ताकि सभी नागरिकों को उनकी सेवा के बाद एक सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिल सके।