कानपुर। कानपुर में आठ साल बाद न्यायालय से एक दिव्यांग व्यक्ति को न्याय मिला, जिसे चरस तस्कर बताकर जेल भेजा गया था। यह मामला 2016 का है जब काकादेव पुलिस ने नीरज पाल को चरस तस्कर बताते हुए गिरफ्तार किया था। पुलिस ने दावा किया था कि उसके पास से 11 किलो चरस बरामद हुई थी। लेकिन अपर जिला जज सप्तम आजाद सिंह ने सबूतों के अभाव में नीरज पाल को दोषमुक्त करार दिया।
पुलिस ने 15 जनवरी 2016 को एक रिपोर्ट दर्ज की थी, जिसमें कहा गया था कि नीरज पाल को गल्ला मंडी चौराहे पर पकड़ा गया था। पुलिस ने बताया कि वह मोटरसाइकिल पर सवार था और उसके पास से 11 किलो चरस और 12,400 रुपये बरामद हुए थे। इस मामले में पुलिस की ओर से सात गवाह पेश किए गए, लेकिन पुलिस की कहानी में इतने पेंच थे कि अभियोजन नीरज को दोषी साबित नहीं कर सका।
नीरज पाल ने अदालत में तर्क रखा कि उसे झूठे मुकदमे में फंसाया गया था, क्योंकि वह एसओ उदय प्रताप यादव के खिलाफ एक महिला से किए गए दुष्कर्म का विरोध कर रहा था। जांच में पाया गया कि जिस मोटरसाइकिल पर नीरज के सवार होने का दावा किया गया था, वह सिपाही बलेंदर पाल के पिता के नाम पर पंजीकृत थी, और बलेंदर ने इसे नीरज के भाई को बेचने की बात कही थी, जिसका कोई प्रमाण पेश नहीं किया गया।
कोर्ट ने यह भी पाया कि चरस के पैकेट में अनियमितता थी। पुलिस ने 24 पैकेट में चरस बरामद होने की बात कही थी, लेकिन विधि विज्ञान प्रयोगशाला में सिर्फ एक ही पैकेट की जांच की गई थी। पुलिस के गवाहों के बयानों में भी कई अंतर पाए गए।
इस मामले में नीरज के परिजनों ने शिकायत की थी, जिसके बाद तत्कालीन एसएसपी आकाश कुलहरि ने विभागीय जांच कराई थी। जांच में 12 पुलिसकर्मी दोषी पाए गए थे और उनके खिलाफ कार्रवाई की गई थी।
इस मामले में दरोगा उदय प्रताप यादव का नाम पहले भी विवादों में आ चुका था। उन पर शादीशुदा होने के बावजूद एक महिला को शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का आरोप भी लगा था।