मरीज को उर्सला अस्पताल से डॉक्टरों ने की छुट्टी

कानपुर। कानपुर के जिला अस्पताल यूएचएम (उर्सला) में एक मरीज को इसलिए इलाज नहीं दिया गया क्योंकि उसके साथ कोई भी तीमारदार नहीं था। पहले तो डॉक्टरों ने उसे भर्ती किया लेकिन तीसरे दिन ही उसे छुट्टी दे दी, जबकि महिला की हालत काफी खराब थी। किसी तरह समाजसेवियों ने महिला को दोबारा भर्ती कराया, लेकिन इसके बावजूद डॉक्टरों ने फिर महिला को वहां से निकाल दिया। अब महिला अपने घर पर इलाज के लिए तरस रही है।

लूज मोशन और उल्टी की समस्या

कानपुर के गोला घाट निवासी 35 साल की रीना 4 जुलाई को उल्टी और लूज मोशन की समस्या लेकर अपने 10 साल के बच्चे के साथ उर्सला अस्पताल आई थी। डॉक्टरों ने उसकी हालत देखकर उसे भर्ती कर लिया था। इसके बाद 7 जुलाई को उसकी छुट्टी कर दी गई, जबकि उसकी हालत इतनी खराब थी कि वह अस्पताल के बाहर ही पूरी रात पड़ी रही।

समाजसेवी की मदद

महिला की स्थिति की जानकारी किसी ने समाजसेवी तरनजीत सिंह को दी। सूचना पर वह मौके पर पहुंचे और डॉक्टरों से बातचीत कर 8 जुलाई को फिर से रीना को भर्ती करा दिया। इसके अलावा उन्होंने रीना की दवाई और उसके बच्चे के खाने की व्यवस्था भी की। इसके बावजूद डॉक्टरों ने 9 जुलाई की रात में उसे फिर से वार्ड से बाहर कर दिया। महिला पूरी रात इमरजेंसी के बाहर पड़ी रही और इलाज की गुहार लगाती रही, लेकिन किसी डॉक्टर ने उसकी एक न सुनी।

वर्तमान स्थिति

किसी तरह महिला उठकर वापस अपने घर चली गई। वर्तमान समय में महिला की हालत काफी खराब है और घर पर कमाने वाला भी कोई नहीं है। रीना के पति की 2015 में मौत हो चुकी है। रीना ने बताया कि सितंबर 2018 में भट्ट से संक्रमित होने के कारण पति की मौत हो गई थी। इसके बाद से घर का खर्च रीना खुद चलाती थी। वह घरों में चौका बर्तन कर के दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर लेती थी, लेकिन वर्तमान में वह उस स्थिति में भी नहीं हैं।

पड़ोसियों की मदद

रीना की हालत को देखकर डॉक्टरों का दिल भले ही न पसीजा हो, लेकिन उनके पड़ोसी इन दिनों मदद कर रहे हैं। पड़ोसी ही रीना और उसके बेटे को खाना-पानी दे रहे हैं और रीना की देखभाल कर रहे हैं।

निष्कर्ष

यह घटना न केवल स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की विफलता को उजागर करती है, बल्कि समाज में इंसानियत और मदद के भाव को भी रेखांकित करती है। समाजसेवियों और पड़ोसियों की सहायता ने इस कठिन समय में रीना की मदद की, जबकि अस्पताल प्रशासन ने उनकी स्थिति को नजरअंदाज कर दिया।