नई दिल्ली (एजेंसी)। शिक्षा बजट को लेकर मोदी सरकार पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। आरोप है कि शिक्षा क्षेत्र में जिस तरह से बजट में वृद्धि होनी चाहिए, वैसा नहीं हो रहा है, बल्कि कई क्षेत्रों में बजट में कटौती की जा रही है। भारत को विकसित देश बनाने की दिशा में तेजी से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इसके लिए शिक्षा क्षेत्र में बड़े बदलाव और निवेश की आवश्यकता है।

शिक्षा का किसी भी देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है। जब कोई सरकार शिक्षा में निवेश करती है, तो उसका सीधा असर देश के भविष्य पर पड़ता है। भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, लेकिन शिक्षा बजट का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 6 प्रतिशत हिस्सा पाने का लक्ष्य अभी भी पूरा नहीं हो पाया है। मौजूदा समय में यह करीब 4.6 प्रतिशत के आसपास है।

पिछले 10 वर्षों में शिक्षा के बजट में वृद्धि हुई है, लेकिन अपेक्षित अनुपात में नहीं। 2024-25 के लिए केंद्र सरकार ने शिक्षा मंत्रालय को 1.20 लाख करोड़ रुपये से अधिक आवंटित किए हैं, जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह राशि 1.29 लाख करोड़ रुपये थी। उच्च शिक्षा नियामक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के लिए अनुदान में 60 प्रतिशत से अधिक की कटौती की गई है।

भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) के लिए भी लगातार दूसरे वर्ष बजट में कटौती की गई है। हालांकि, स्कूल शिक्षा के लिए बजट में 535 करोड़ रुपये की वृद्धि की गई है, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए अनुदान पिछले वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान से 9,600 करोड़ रुपये कम कर दिया गया है। शिक्षा क्षेत्र के कुल बजट आवंटन में भी 9,000 करोड़ रुपये से अधिक की कटौती की गई है।