नई दिल्ली, एजेंसी। राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों के कामकाज की प्रणाली को मजबूत करने के लिए गुरुवार को लोकसभा में एक विधेयक पेश किया गया। हालांकि, विपक्षी सांसदों ने इस कदम की संवैधानिकता पर सवाल उठाए। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि संविधान की सूची-1 और सूची-2 में केंद्र और राज्य के विषय से संबंधित कोई भी प्रविष्टि आपदा प्रबंधन से जुड़ी नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को समवर्ती सूची में संशोधन करना चाहिए, ताकि आपदा प्रबंधन के मुद्दे को कवर करने के लिए उचित प्रविष्टि हो सके। उन्होंने कहा कि कानून की विधायी शक्ति को उचित तरीके से परिभाषित किया जाना चाहिए। तिवारी ने यह भी कहा कि विधेयक में केंद्र की नियम बनाने की शक्ति राज्यों की शक्तियों पर अतिक्रमण करती है। वहीं, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सौगत रे ने कहा कि अधिकारियों की बहुलता भ्रम पैदा करेगी। बाद में इस विधेयक को ध्वनिमत से पेश किया गया।
आपदा प्रबंधन राज्यों की पहली जिम्मेदारी: नित्यानंद राय
आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने पेश किया। उन्होंने कहा कि राज्यों के अधिकारों में कोई दखलंदाजी नहीं है और आपदा प्रबंधन राज्यों की पहली जिम्मेदारी है। विधेयक के उद्देश्यों के मुताबिक, 2005 के अधिनियम का मुख्य मकसद आपदा प्रबंधन योजनाओं के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए आवश्यक संस्थागत तंत्र बनाना है। 2005 अधिनियम का मुख्य उद्देश्य आपदा प्रबंधन योजनाओं के क्रियान्वयन की तैयारी और निगरानी के लिए जरूरी संस्थागत तंत्र बनाना है। इसके उद्देश्य को हासिल करने के लिए राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर कुछ प्राधिकरण और समितियां स्थापित की गई हैं। सरकार ने कहा कि विकास योजनाओं में आपदा प्रबंधन को मुख्यधारा में लाने और पिछली आपदाओं से सीख लेने के लिए राज्य सरकारों सहित सभी हितधारकों के परामर्श से आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2025 की समीक्षा की गई है। अब अधिनियम के कुछ प्रावधानों में संशोधन करना जरूरी हो गया है, जो आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में काम करने वाले अधिकारियों और समितियों की भूमिका में अधिक स्पष्टता लाने का प्रयास करेगा।