पाकिस्तान एससीओ के बारे में क्या सोचता है:

सबकी नजरें भारत पर टिकी हैं, इस्लामाबाद में एससीओ सम्मेलन होना है। क्या भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले माह इस्लामाबाद में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सम्मेलन में हिस्सा लेंगे, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। एससीओ जैसी बैठकें भारत और पाकिस्तान के लिए बातचीत का एकमात्र मंच होती हैं, लेकिन पिछले कई वर्षों से दोनों देशों के बीच कोई द्विपक्षीय वार्ता नहीं हुई है। पिछली बार जब बिलावल भुट्टो गोवा गए थे, तब भी उनकी भारतीय विदेश मंत्री के साथ अलग से कोई बैठक नहीं हुई थी।

एससीओ बैठक द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा का मंच नहीं है, लेकिन वर्ष 2015 में रूस के उफा शहर में हुए एससीओ सम्मेलन में नवाज शरीफ और नरेंद्र मोदी के बीच द्विपक्षीय वार्ता हुई थी और दोनों ने संयुक्त बयान जारी किया था। इसी तरह की घटनाओं से यह उम्मीद की जा रही है कि इस बार भी कुछ सकारात्मक पहल हो सकती है।

व्यक्तिगत रूप से पाकिस्तान में यह मान्यता है कि प्रधानमंत्री मोदी को पाकिस्तान आकर रिश्तों में गर्मजोशी का संदेश देना चाहिए। वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं और अपनी इच्छाशक्ति का प्रदर्शन कर सकते हैं। जैसे वर्ष 2015 में काबुल से लौटते वक्त वह अचानक लाहौर पहुंचे थे और नवाज शरीफ की नातिन की शादी में शामिल हुए थे। हालांकि, इसके कुछ दिन बाद ही पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले ने दोनों देशों के रिश्तों में तनाव पैदा कर दिया था।

अब भी पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन एससीओ के कई अन्य सदस्य देशों ने सम्मेलन में भाग लेने की पुष्टि कर दी है। सबकी नजरें अब भारत पर हैं कि क्या प्रधानमंत्री मोदी सम्मेलन में शामिल होंगे या नहीं। पिछले वर्ष गोवा में एससीओ की बैठक में पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने हिस्सा लिया था।

पाकिस्तान के राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी संगठन एससीओ के तहत सभी सदस्य देशों के प्रमुखों को बैठक में भाग लेने के लिए निमंत्रण भेज चुके हैं। अब देखना यह है कि भारत की ओर से कौन इस बैठक में भाग लेगा और क्या यह सम्मेलन भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में कुछ सकारात्मक बदलाव ला पाएगा।