अरविंद मोहन

बांग्लादेश में तख्तापलट के साथ ही भारत के पड़ोसी देशों में हमारा एकमात्र सच्चा मित्र शासन भी खत्म हो गया है। नया शासन अनिवार्यतः हमारा बैरी हो, यह जरूरी नहीं है, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता, फौजी दखल, और कई स्पष्ट भारत-विरोधी राजनीतिक ताकतों के बीच बांग्लादेश में किस तरह का संतुलन बनेगा और वह भारत से कैसे संबंध रखेगा, यह आने वाले वक्त में तय होगा। यह हमारी कूटनीति की भी परीक्षा है।

मालदीव में एकदम भारत विरोधी शासन को बहुत जल्दी अपने रुख में 180 डिग्री का बदलाव करना पड़ा, पर वह बहुत छोटा देश है और भारत पर उसकी निर्भरता कहीं अधिक है। नेपाल में भी ओली सरकार का रुख चीन समर्थक है। पाकिस्तान की बात ही क्या है। श्रीलंका की सरकार भी भारत के बहुत पक्ष की नहीं है। अफगानिस्तान और चीन के अपने किस्से बहुत हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारत जिन देशों से घिरा है, वहां की सरकारें भारत समर्थक नहीं हैं, और इनसे रिश्ता रखते हुए भारत को फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाने होंगे।

बांग्लादेश की सत्ता छोड़ने और देश छोड़ने को मजबूर हुईं शेख हसीना के साथ ऐसा नहीं था। उनके पंद्रह साल लंबे शासन में भारत बांग्लादेश की तरफ से काफी निश्चिंत रहा है। भारत के कई उद्यमियों ने बांग्लादेश के सस्ते श्रम के लोभ में अपने उत्पादन का केंद्र वहां भी बना रखा था। चीन भी बांग्लादेश के समुद्री लोकेशन और सस्ते श्रम को लेकर उसके आसपास मंडराता रहा है। शेख हसीना के शासन में पंद्रह साल में बांग्लादेश ने अच्छी आर्थिक तरक्की की थी और कई पैरामीटर पर बांग्लादेश भारत से बेहतर स्थिति में है।

हालांकि, शेख हसीना के शासन के दौरान कई विवादास्पद कदम भी उठाए गए। विपक्ष की नेता खालिदा जिया जेल में बंद थीं, और नोबल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस भी जेल में थे। पिछले चुनाव भी लोकतंत्र का मजाक था। शेख हसीना ने छात्रों और नौजवानों के आंदोलन को शांतिपूर्ण तरीके से निपटाने के बजाय कठोर पुलिस कार्रवाई का सहारा लिया, जिससे उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई।

बांग्लादेश में हाल के तख्तापलट में सेना प्रमुख वकारुज्जमां ने भूमिका निभाई, जिसे शेख हसीना ने हाल ही में प्रमोट किया था। यह सत्ता के मद में हुई एक बड़ी गलती थी। हालांकि, इस प्रकरण में भारत ने शेख हसीना को शरण देकर उचित व्यवहार दिखाया।

भारत और शेख मुजीबुर्रहमान का रिश्ता बहुत गहरा था, और शेख हसीना के साथ भी भारत के संबंध मजबूत थे। हालांकि, अब वह सत्तर पार कर चुकी हैं, और उनकी वापसी की संभावना कम ही है। बांग्लादेश में राजनीतिक रूप से क्या होगा, इसकी भविष्यवाणी करना कठिन है, क्योंकि सत्ता का स्वाद चख चुकी फौज बहुत जल्दी लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल करेगी, यह असंभव सा है।

बांग्लादेश में जो भी तत्व हसीना विरोधी हैं, वे भारत विरोधी भी हैं। खालिदा जिया ने सत्ता में आने पर भारत से हुए समझौतों पर पुनर्विचार की बात कही थी। निश्चित रूप से बांग्लादेश में तख्तापलट का भारत पर असर होगा।

भारत को इन हालात में फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना होगा। यह याद रखना लाभदायक होगा कि इन सबका विरोध शेख हसीना से था, भारत से नहीं। लेकिन अगला कदम उठाने से पहले भारत को गंभीरता से हर चीज पर गौर करके ही आगे बढ़ना चाहिए।