- नेहाल सिंह
बांग्लादेश में पिछले लगभग 20 दिनों से चल रहे आरक्षण विरोधी आंदोलन को झेलने में असमर्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अंततः इस्तीफा दे दिया है। खबर है कि शेख हसीना ने देश भी छोड़ दिया है और सेना के विशेष हेलीकॉप्टर से शरण लेने के लिए भारत आ गई हैं। आरक्षण विरोधी आंदोलन के तेज होने के बाद बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण में कोटा घटाने का फैसला लिया था, जिससे स्थिति कुछ हद तक शांत होने लगी थी। लेकिन बाद में यह आंदोलन एक सूत्रीय मांग पर केन्द्रित हो गया था कि शेख हसीना इस्तीफा दें।
इसे लेकर पिछले एक पखवाड़े से पूरे देश में हिंसा जारी है। पीएम आवास सहित राजधानी ढाका पर आंदोलनकारियों का कब्जा हो गया है। वे पीएम आवास के अंदर घुस चुके हैं और ज्यादातर शहरों की पुलिस चौकियों में जमे हुए हैं। रविवार को बड़ी तादाद में सड़कों पर उतरे युवा एवं छात्र पुलिस व सेना के नियंत्रण से बाहर हो गए हैं। प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी और जमात का इस आंदोलन के पीछे हाथ बताया जाता है। शेख हसीना ने इसे लेकर इशारा भी किया था कि यह आंदोलन अब राजनीतिक हो गया है।
भारत सरकार ने एक एडवाइजरी जारी कर भारतीयों को बांग्लादेश की यात्रा टालने की सलाह दी है। ढाका में वहां के सेना प्रमुख वकार-उज-जमान ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा है कि शेख हसीना को सुरक्षित स्थान पर भेजा गया है। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि देश में अंतरिम सरकार का गठन किया गया है और जनता से हालात सुधारने के लिए कुछ समय मांगा है। जाहिर है कि बांग्लादेश में तख्तापलट हो चुका है और हालात 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के रूप में मुख्य देश से अलग होने के मुक्ति संग्राम के दिनों जैसे हो गए हैं।
शेख हसीना के इस्तीफे के बाद भारत के लिए मामला महत्वपूर्ण हो गया है। उल्लेखनीय है कि प्रदर्शनकारी 1971 की विवादग्रस्त आरक्षण प्रणाली को समाप्त करने की मांग कर रहे थे, जिसके जरिये 1971 के मुक्ति संग्राम सेनानियों के वंशजों के लिए शासकीय नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। इस आरक्षण का समर्थन करने वाले और विरोधियों के गुट आमने-सामने हैं, जिनकी हिंसक मुठभेड़ों में 300 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की बात कही जाती है। बड़ी संख्या में लोगों के घायल होने की भी खबरें हैं। इस दौरान कई स्थानों पर तोड़-फोड़ और आगजनी से भी नुकसान हुआ है, खासकर सरकारी सम्पत्तियों को बड़े पैमाने पर क्षति पहुंचाई गई है।
तीन दिन पहले देश भर में कर्फ्यू लगा दिया गया था और पीएम ने सेना को हालात सुधारने का जिम्मा दिया था। देश में महिलाओं के लिए 10%, धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों को 5%, और विकलांग लोगों के लिए 1% आरक्षण है, लेकिन विरोध मुख्यतः स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को दिए जाने वाले आरक्षण का हो रहा है। हाईकोर्ट ने आरक्षण कोटा घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया था, लेकिन आंदोलनकारी इसे पूरी तरह समाप्त करना चाहते हैं।
अंतरिम सरकार के गठन के बाद देखना होगा कि हालात कैसे सुधरते हैं। बांग्लादेश के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस ने भारत सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई है। यूनुस ने बांग्लादेश के आंदोलन से उपजी स्थिति पर भारतीय दूतावास के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल के बयान से व्यथित होकर कहा कि जब भारत कहता है कि यह घरेलू मामला है तो मुझे दुख होता है। यूनुस का मानना है कि भारत को शेख हसीना सरकार की आलोचना करनी चाहिए थी।
बांग्लादेश में होने वाली हर घटना का असर भारत पर पड़ता ही है, खासकर इसके सीमावर्ती राज्यों में। भारत के लिए बांग्लादेश महत्वपूर्ण पड़ोसी है, जिसके साथ कई उतार-चढ़ावों के बावजूद अच्छे रिश्ते बने हुए हैं। बांग्लादेश के सम्प्रभु राष्ट्र बनने में भारत का बड़ा योगदान रहा है और इस वक्त भी शेख हसीना को भारत में शरण मिली है, जैसा कि 1975 में शेख मुजीब का तख्तापलट होने पर हुआ था।