पाकिस्तान और सहिष्णुता: अल्पसंख्यकों के बीच असुरक्षा की भावना चिंताजनक, अल्पसंख्यक आयोग का गठन आशावादी पहल
मरिआना बाबर
पाकिस्तान की स्वतंत्रता के समय देश की आबादी का 23 फीसदी हिस्सा अल्पसंख्यक था, जो आज घटकर तीन से चार फीसदी रह गया है। विभाजन के बाद बड़ी संख्या में हिंदू और सिख पाकिस्तान से भारत चले गए। वर्तमान में पाकिस्तान में बचे अल्पसंख्यकों में हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध, अहमदिया, बहाई और अन्य शामिल हैं।
अल्पसंख्यकों की स्थिति
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है। धार्मिक असहिष्णुता से प्रेरित घटनाओं ने अल्पसंख्यक समुदायों के बीच असुरक्षा की भावना को बढ़ाया है। हाल ही में हुई धार्मिक हिंसा की घटनाओं से यह भावना और भी तेज हो गई है।
सकारात्मक पहल
हालांकि, कुछ सकारात्मक पहल भी सामने आई हैं। पाकिस्तान ने अंतर-धार्मिक सद्भाव बनाने के लिए एक राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग गठित किया है। इसके अतिरिक्त, पाकिस्तानी सेना और सरकारी सेवाओं में अल्पसंख्यकों के प्रति स्वीकृति, समावेशन और न्यायसंगत व्यवहार के उदाहरण भी सामने आए हैं।
मेजर जनरल जुलियन जेम्स की पदोन्नति
पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार एक गैर-मुस्लिम (ईसाई) व्यक्ति मेजर जनरल जुलियन जेम्स सेना के विशेष सेवा समूह में दो-सितारा जनरल के पद पर पहुंचे हैं। उनकी पदोन्नति को एक बड़ी उपलब्धि माना गया है और यह जाति और पंथ से परे प्रदर्शन और योग्यता को पुरस्कृत करने की सशस्त्र बलों की प्रतिबद्धता का भी उदाहरण है।
अन्य प्रेरणादायक उदाहरण
- डॉ. हेलेन मैरी रॉबर्ट्स: मेडिकल कोर में ब्रिगेडियर बनने वाली पहली ईसाई महिला, जिनकी सफलता पूरे पाकिस्तान में महिलाओं को प्रेरित करती है।
- डॉ. कैलाश कुमार: पहले हिंदू अधिकारी, जिन्हें लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर प्रोन्नत किया गया।
- हरचरण सिंह: पहले सिख अधिकारी, जो पाकिस्तानी सेना में मेजर के पद पर कार्यरत हैं।
संविधान और सर्वोच्च पद
पाकिस्तान के संविधान के अनुसार, मुल्क का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने के लिए मुसलमान होना जरूरी है। पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पदों पर कभी आसीन नहीं हो सकते। हालांकि, पाकिस्तानी सेना में शामिल होने के लिए इस तरह के नियम व विनियम आवश्यक नहीं हैं।
निष्कर्ष
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की असुरक्षा की भावना चिंताजनक है, लेकिन अल्पसंख्यक आयोग का गठन और अल्पसंख्यकों की सेना और सरकारी सेवाओं में उच्च पदों पर पहुंचने की घटनाएं आशावादी पहल हैं। इन घटनाओं से पाकिस्तान में सहिष्णुता और समावेशन की दिशा में एक नई उम्मीद जागी है।