विनेश फोगाट का ओलंपिक में फाइनल मुकाबला न खेल पाना और उन्हें अयोग्य घोषित करना, खेल के मैदान से अधिक राजनीति और साजिश का मुद्दा बनता जा रहा है। विनेश फोगाट ने ओलंपिक में अपनी ताकत और कौशल का प्रदर्शन करते हुए क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल में शानदार जीत हासिल की थी, जिससे उनका पदक जीतना लगभग तय था। लेकिन अंतिम क्षणों में उनका वजन माप में सौ ग्राम ज्यादा पाया गया, जिससे उन्हें फाइनल मुकाबले से बाहर कर दिया गया।
विनेश फोगाट के इस दुर्भाग्यपूर्ण निष्कासन के पीछे कई सवाल खड़े हो गए हैं। क्या यह सिर्फ एक तकनीकी गलती थी, या इसके पीछे कुछ और साजिश थी? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि विनेश फोगाट का प्रदर्शन सिर्फ खेल तक सीमित नहीं था; उन्होंने सरकार के खिलाफ आवाज उठाई थी, विशेष रूप से महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के मामलों में। उनके विरोध और साहस ने उन्हें सरकार की आंखों में खटकने वाला बना दिया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विनेश को सांत्वना देने के लिए ट्वीट किया, लेकिन उनके समर्थकों के मन में यह सवाल उठता है कि क्या सरकार ने उनके साथ न्याय करने के लिए पर्याप्त कदम उठाए? खेल मंत्री मनसुख मंडाविया का बयान भी बहुत संतोषजनक नहीं था, जिससे यह संदेह और गहरा हो गया कि कहीं न कहीं इस मामले में सरकार की निष्क्रियता थी।
इस घटना से यह भी सवाल उठता है कि क्या खेल प्रतियोगिताओं में राजनीति और साजिश को स्थान दिया जा रहा है? विनेश फोगाट का मामला केवल एक खेल का मुद्दा नहीं है, यह एक प्रतीक है कि किस प्रकार राजनीति और साजिश खेल के पवित्र अखाड़े में भी प्रवेश कर चुकी है।
देश के लोग अब इस बात की उम्मीद कर रहे हैं कि भारतीय ओलंपिक संघ इस निर्णय के खिलाफ मजबूती से खड़ा होगा और विनेश फोगाट को न्याय दिलाने की हर संभव कोशिश करेगा।
विनेश फोगाट का यह मामला खेल और राजनीति के बीच की विभाजन रेखा को धुंधला करता है और यह दर्शाता है कि साजिश और अन्याय कैसे खेल के मैदान में भी अपना असर डाल सकते हैं।