अब तक हरियाणा पदक जीतने वाले पहलवानों के लिए जाना जाता था, लेकिन अब इसे निशानेबाजी की नई पहचान मिली है। रविवार को मनु भाकर ने 10 मीटर एयर पिस्टल शूटिंग के महिला वर्ग में कांस्य पदक जीतकर भारत के लिए पदकों की शुरुआत की। मंगलवार को मंगल हुआ और झज्जर की मनु और अंबाला के सरबजोत सिंह ने तीन दिन के भीतर दूसरा कांस्य पदक जीतकर पेरिस में दमखम दिखाने गए खिलाड़ियों के दल और देश का उत्साह बढ़ाया।
मनु उस हरियाणा की हैं जो कभी लैंगिक भेदभाव के लिए जाना जाता था। हालांकि, अब हालात बदले हैं। मनु की दोहरी सफलता का संदेश साफ है कि ‘बेटी पढ़ाओ, खूब खेलाओ।’ मनु ने दो कांस्य पदक ही नहीं जीते, कई रिकॉर्ड भी अपने नाम किए। वह ओलंपिक में शूटिंग में पदक जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी ही नहीं बनी, बल्कि भारत की ओर से एक ही ओलंपिक में दो पदक हासिल करने वाली पहली खिलाड़ी भी बनी।
मनु की यह उपलब्धि इस मायने में भी खास है कि टोक्यो ओलंपिक में उसकी पिस्टल में खराबी आने के कारण वह जीत के दरवाजे के बाहर से ही लौट आई थी। वह लंबे समय तक तकनीकी कारणों से मिली असफलता के तनाव से जूझती रही। लेकिन उस असफलता के अवसाद को दरकिनार कर दोहरी सफलता पाना निश्चित रूप से तमाम युवाओं के लिए प्रेरणा की मिसाल है। दस मीटर एयर पिस्टल के मिक्स्ड टीम इवेंट में मनु और सरबजोत सिंह की कामयाबी भी कई मायनों में खास है क्योंकि उन्होंने कोरिया के दिग्गज खिलाड़ियों को हराकर यह सफलता हासिल की। कोरियाई टीम में एक वह शूटर भी शामिल थी जिसने रविवार के दस मीटर एयर पिस्टल वर्ग में नए ओलंपिक रिकॉर्ड के साथ गोल्ड मेडल जीता था।
यह जीत इन खिलाड़ियों के मजबूत मानसिक स्तर की ही परिचायक है क्योंकि शूटिंग के खेल में गहरी मानसिक एकाग्रता व ऊंचे आत्मविश्वास की जरूरत होती है। वैसे मनु भाकर ने पिछली असफलता को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने का जो जुनून दिखाया वह हर खिलाड़ी ही नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए भी प्रेरणादायक है। दरअसल, वर्ष 2021 के टोक्यो ओलंपिक के दु:स्वप्न से मिली असफलता के चलते एक समय ऐसा भी आया कि मनु का मन शूटिंग से खिन्न होने लगा।
मनु का करियर संवारने के लिए अपना मरीन इंजीनियर का करियर छोड़ने वाले पिता रामकिशन भाकर ने बेटी के सपनों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्हें विश्वास था कि वर्ष 2018 में महिला विश्व कप में एक ही दिन में दो स्वर्ण पदक जीतने वाली मनु में खेल की अपार संभावनाएं छिपी हैं। तब उसने दो बार की विश्व विजेता मैक्सिको की खिलाड़ी को हराया था। इसी प्रदर्शन के बूते मनु ने टोक्यो ओलंपिक में जगह बनाई थी।
टोक्यो ओलंपिक में नाकामी के बाद कोच जसपाल राणा से हुआ विवाद अब अतीत का किस्सा है। भगवद् गीता के सर्वकालिक संदेश कर्म किए जाने के मंत्र का अनुसरण करने वाली मनु ने कालांतर सोच बदली। एक साल में चार कोच आजमाने के बाद फिर पुराने कोच जसपाल राणा को याद किया। जसपाल भी जानते थे कि मनु में इतिहास की नई इबारत लिखने की संभावना निहित है। जसपाल भी अपनी अकादमी के सौ छात्रों को भुलाकर पेरिस में मनु को कामयाब बनाने में जुटे।
निस्संदेह, देश में खिलाड़ियों की कमी नहीं है। जरूरत है उन्हें वह वातावरण देने की, जिसमें उनकी प्रतिभा में निखार आ सके। केंद्रीय खेल मंत्री के अनुसार, खेलो इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत केंद्र सरकार ने मनु भाकर की ट्रेनिंग में दो करोड़ रुपये खर्च किए। आर्थिक सहायता से मनपसंद का कोच रखना संभव हुआ। प्रशिक्षण के लिए जर्मनी व स्विट्जरलैंड भेजा गया। देश को मनु से एक और पदक की दरकार है। अभी पेरिस में मनु की प्रिय स्पर्धा पच्चीस मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा बाकी है। उम्मीद करें कि एक सौ चालीस करोड़ देशवासियों की उम्मीदों पर मनु फिर खरी उतरेगी। विश्वास करें कि देश की तमाम महिला खिलाड़ियों को मनु की इस सफलता से संबल मिलेगा। देश में महिला खेलों की स्थितियों में सुधार लाना सरकार की भी प्राथमिकता होनी चाहिए।