वीर सिंह
विश्व के लगभग सभी देश अपनी अर्थव्यवस्था को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मानकों से आंकते हैं। भूटान सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता (ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस) को अपना सबसे बड़ा आधार मानता है। लेकिन 19 जुलाई को उत्तराखंड ने अपनी अर्थव्यवस्था के आकलन के लिए जिस मानक की घोषणा की, वह अद्वितीय है। सकल पर्यावरणीय उत्पाद (जीईपी) को अपनी अर्थव्यवस्था का मानक मानने वाला यह हिमालयी राज्य देश का पहला ऐसा राज्य है, जो दुनिया भर के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण बन गया है। हालांकि ऐसी आर्थिक विकास की नीति कोस्टारिका तथा कुछ अन्य देशों में आंशिक रूप से प्रभावी है। इस अवधारणा को आगे बढ़ाने के लिए वर्षों से प्रयासरत पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी और उत्तराखंड प्रशासन की यह पहल स्वागत योग्य है, परंतु इस पर इतनी चर्चा नहीं हो रही, जितनी होनी चाहिए।
जीडीपी आर्थिक प्रदर्शन का व्यापक रूप से स्वीकृत माप है, परंतु आर्थिक गतिविधियों से जुड़ी पर्यावरणीय लागतों और लाभों को ध्यान में रखते हुए यह आर्थिकी के वास्तविक आकलन की एक कमजोर कड़ी है। जबकि सकल पर्यावरणीय उत्पाद (जीईपी) की अवधारणा मानव सहित सभी जीवों के कल्याण और अर्थव्यवस्था में प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के योगदान को मापने के सार्थक दृष्टिकोण के रूप में उभरी है।
महात्मा गांधी ने जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली, न कि लालच की पूर्ति करने वाली, आर्थिकी का दर्शन दिया था। सुंदरलाल बहुगुणा ने “पारिस्थितिकी ही स्थायी आर्थिकी है” का सिद्धांत दिया था। सकल पर्यावरणीय उत्पाद (जीईपी) एक अभिनव मानदंड है, जिसे प्रकृति द्वारा प्रदान की गई पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को मापने और महत्व देने के लिए तैयार किया गया है। जीईपी का लक्ष्य इन विविध योगदानों को एकल मौद्रिक मूल्य में समाहित करना है, जो आर्थिक और सामाजिक कल्याण के समर्थन में प्राकृतिक पूंजी के वास्तविक मूल्य को दर्शाता है। जीईपी मूल्यांकन पर्यावरणीय कारकों को शामिल करके आर्थिक प्रदर्शन का अधिक व्यापक मूल्यांकन प्रदान करता है।
वैसे जीईपी की अवधारणा का उद्देश्य एक ही है – पारिस्थितिकी-केंद्रित सतत सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक विकास। उत्तराखंड में जो जीईपी लागू किया जाना है, उसमें पर्यावरण के चार घटकों (जल, वायु, वन, और मिट्टी) संबंधी सूचकांक शामिल हैं। आर्थिक विकास की नीतियों, योजनाओं और प्रक्रियाओं में पर्यावरण के इन घटकों की गुणवत्ता सुनिश्चित रखना किसी भी प्रशासन का नैतिक दायित्व है और इसे मूर्त रूप देने में उत्तराखंड सरकार ने पर्यावरण-नैतिकता के प्रदर्शन का साहस दिखाया है।
जीईपी को कार्रवाई योग्य नीतियों और निर्णयों में बदलने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और संस्थागत क्षमता की आवश्यकता है। सरकारों और संगठनों को अपनी योजना प्रक्रियाओं में जीईपी को एकीकृत करने और पर्यावरणीय स्थिरता के साथ आर्थिक प्रोत्साहन में तालमेल बनाना चाहिए। उत्तराखंड में एक जीईपी सेल की स्थापना की बात कही गई है, जो जीईपी के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करेगी।
जीईपी को नीति आयोग के साथ जोड़ने और इसे पूरे देश के लिए लागू करने की आवश्यकता है। जीईपी आर्थिक प्रगति और स्थिरता पर पुनर्विचार करने के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण प्रदान करता है। प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र द्वारा प्रदान किए गए असंख्य लाभों को महत्व देकर जीईपी आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच अंतर को पाटता है। इसमें नीतियों को नया आकार देने, टिकाऊ प्रथाओं का मार्गदर्शन करने और मनुष्यों और प्रकृति के बीच अधिक सामंजस्यपूर्ण संबंध को बढ़ावा देने की क्षमता होती है।
जीईपी को अपनाना न केवल एक आर्थिक अनिवार्यता है, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए ग्रह की सुरक्षा का एक नैतिक दायित्व भी है।