रुपहले पर्दे की दुनिया में सिनेमाई शिक्षक और किरदार बनने की क्षमता रखते हैं। काल यहाँ भी 1950 के दशक का ही है। मिस्टर कीटिंग काव्य के सहारे छात्रों में नई चेतना जगाता है, जबकि कैथरीन मॉर्डन आर्ट्स के सहारे यह काम करती है। छात्राओं को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आर्थिक स्वावलंबन से परिचित कराती है। दोनों टीचर को फिल्म के मध्य में मैनेजमेंट के कोप का सामना करना पड़ता है, अंततः वे छात्रों के चहेते और एक सफल टीचर की ऊंचाई पाते हैं।

इनसे हटकर है, 1994 की दो घंटे से कुछ ऊपर की फिल्म ‘रेनेसाँ मैन’। यह कॉमेडी-ड्रामा फिल्म पेनी मार्शल द्वारा निर्देशित है। बिल रैगो (डैनी डेविटो) तलाकशुदा असफल व्यापारी है। वह विज्ञापन जगत में विफल रहा है, तभी उसे सेना द्वारा नए रंगरूटों को प्रशिक्षण के लिए रखा जाता है। वेल्टन अकादमी का काल 1959 है। पहले दिन इंग्लैंड के कैम्ब्रिज से इंग्लिश पढ़े मिस्टर कीटिंग के छात्र उसके पढ़ाने के गैरपरंपरागत तरीके से चकित हैं, जबकि कैथरीन को जल्द पता चलता है कि उसकी छात्राओं ने पूरी टेक्स्टबुक और सिलेबस कंठस्थ कर रखा है। वह इन छात्राओं को केवल एक सफल पत्नी बनने की परंपरागत सोच से हटकर नेतृत्वकर्ता बनने की चुनौती देती है।

टीचर से जुड़ी फिल्मों में अक्सर शिक्षक परंपरागत शिक्षकों से बहुत भिन्न होते हैं। 1987 की फिल्म में मोहनलाल ने इंग्लिश टीचर की भूमिका निभाई, जहाँ वह अपने छात्रों को उनकी प्रतिभा के अनुसार प्रोत्साहित करते हैं। 1989 की ‘डेड पोयेट्स सोसायटी’ और 2003 की ‘मोना लीसा स्माइल’ जैसी फिल्मों में टीचर की महत्वपूर्ण भूमिका दिखाई गई है। ‘डेड पोयेट्स सोसायटी’ में रॉबिन विलियम्स और ‘मोना लीसा स्माइल’ में जूलिया रॉबर्ट्स ने छात्रों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्मविश्वास प्राप्त करने की प्रेरणा दी है।

ऐसा नहीं है कि ऐसे शिक्षक केवल फिल्मों में मिलते हैं, वास्तविक जीवन में भी ऐसे टीचर होते हैं, लेकिन वे विरले होते हैं। एम मोहनन की 2011 की मलयालम फिल्म ‘माणिक्यकल्लु’ में पृथ्वीराज सुकुमारन का किरदार गाँव के स्कूल के छात्रों के नजरिए में सकारात्मक परिवर्तन लाता है। टीचर से जुड़ी फिल्में अंत में दर्शकों में फीलगुड का भाव उत्पन्न करती हैं।