राजकुमार शर्मा

विभिन्न विषयों पर अपने विचारों को निर्भीकता एवं मुखरता के साथ रखने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती शंकराचार्य ने एक महत्वपूर्ण बयान देकर समाज के समक्ष यह सोचने का अवसर और चुनौती दोनों ही पेश कर दी है, जिसमें उन्होंने कहा है कि “राजनीतिज्ञों को धर्म के बारे में बात करनी छोड़नी चाहिए तभी उनके जैसे धार्मिक लोग राजनीति पर बोलना छोड़ेंगे।” पिछले कुछ समय से भारतीय जनता पार्टी सरकार के खिलाफ कई बयान देकर चर्चा में रहने वाले अविमुक्तेश्वरानंद ने अपने ताजा बयान में साफ किया है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शत्रु नहीं वरन हितैषी हैं।

उत्तराखंड के ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उनसे पूछा गया था कि क्या धर्माचार्य को राजनीति पर बात करना उचित है? इस पर उन्होंने कहा कि “राजनीति में रहने वाले धर्म पर बात करना छोड़ दें, धर्माचार्य भी राजनीति के बारे में बात करना छोड़ देंगे।” उनका केवल इशारा मात्र मोदी या भाजपा पर नहीं था, बल्कि उन्होंने यह कहने में भी कोई परहेज नहीं किया कि “जब मोदी यमराज के सामने खड़े होंगे तो वे उन्हें क्या जवाब देंगे?” उन्होंने साफ किया कि वे मोदी की मदद कर रहे हैं ताकि वे अपने कर्म सुधार सकें।

अविमुक्तेश्वरानंद पिछले कुछ समय से भाजपा पर जैसे प्रहार कर रहे हैं, उनमें यह कठोरतम टिप्पणी कही जा सकती है। देखना होगा कि इसका जवाब भाजपा के प्रचार विभाग से क्या आता है। जो भी हो, उनके इस बयान से देश के अनेक धर्माचार्य मोदी-भाजपा के खिलाफ खुलकर सामने आ सकते हैं। पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से मोदी राजनीतिक लाभ लेने के लिए जिस प्रकार से धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे शंकराचार्य भी अनेक धार्मिक संगठनों एवं धर्माचार्यों की तरह ही व्यथित हुए होंगे। सम्भवत: यही कारण है कि वे पिछले कुछ समय से मोदी एवं भाजपा सरकार के खिलाफ जमकर हमले बोल रहे हैं। चूंकि वे कोई छोटे-मोटे साधु-संत, बाबा या कथावाचक नहीं हैं, इसलिये उन पर भाजपा पलटवार नहीं कर रही है।

वैसे अविमुक्तेश्वरानंद साफ करते हैं कि शंकराचार्य होने के नाते किसी भी अधर्म की ओर ध्यान दिलाना उनका कर्तव्य है। अविमुक्तेश्वरानंद हाल ही में देश के प्रमुख उद्योगपति मुकेश अंबानी के पुत्र अनंत की शादी में भी गए थे, जहां उन्होंने मोदी को भी आशीर्वाद दिया था। इस बाबत पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि “वे मोदी के कोई दुश्मन नहीं हैं। उल्टे वे तो मोदी के हितैषी हैं परंतु जो गलत होता है, उसका वे विरोध करते हैं।”

मोदी-भाजपा के खिलाफ यह शंकराचार्य का कोई पहला हमला नहीं है। वे पहले प्रमुख धर्माचार्य थे जिन्होंने अयोध्या के आधे-अधूरे रामलला मंदिर की मोदी द्वारा प्राणप्रतिष्ठा का यह कहकर खुला विरोध किया था कि ऐसा करना शास्त्रसम्मत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा था कि मंदिर रामानंद सम्प्रदाय को सौंप दिया जाना चाहिए क्योंकि उस पर उसी का अधिकार है। हाल ही में उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि केदारनाथ मंदिर से 228 किलो सोना गायब हो गया है। उनका इशारा मंदिर की प्रबंध समिति के सदस्यों की ओर सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा की ओर था जिसका समिति पर तो वर्चस्व है ही, प्रदेश में भी सरकार है। हालांकि उनके इस बयान से प्रबंध समिति ने नाराजगी जताते हुए कहा कि “अविमुक्तेश्वरानंद को विवाद खड़ा नहीं करना चाहिए बल्कि…”.

अविमुक्तेश्वरानंद के इस विचार से यह स्पष्ट होता है कि धर्म और राजनीति के बीच की सीमा को स्पष्ट रूप से स्थापित करना आवश्यक है। उनके इस बयान से देश में धर्म और राजनीति के अलगाव की आवश्यकता पर एक गंभीर चर्चा की शुरुआत हो सकती है। यह विचार-विमर्श न केवल राजनीतिक नेतृत्व को सही दिशा में ले जाने का प्रयास होगा, बल्कि धार्मिक नेताओं को भी उनके धार्मिक कर्तव्यों के प्रति अधिक जागरूक करेगा।