मित्तल जैन
सोमवार से प्रारम्भ हो रहे संसद के मानसून सत्र में नयी सरकार की बड़ी घेराबंदी तय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी कमजोर कदमों से सरकार के रूप में संसद भवन पहुंची है, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन 2014 एवं 2019 की तुलना में बड़े आकार, एकजुटता और बढ़े हुए मनोबल के साथ संसद के दोनों सदनों में दहाड़ मारने को तैयार है। लोकसभा का पहला सत्र 22 जून से 2 जुलाई और राज्यसभा का सत्र 27 जून से 3 जुलाई तक हुआ था, जिसमें विपक्ष अपने दम की झलक दिखा चुका है।
इस बीच राज्यसभा में भाजपा व उसके सहयोगी गठबंधन नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस का घटा हुआ बहुमत सत्ताधारी दल को बैकफुट पर बैटिंग करने को मजबूर करेगा। पिछले सत्र में नीट परीक्षा के पेपर लीक का मामला जोर-शोर से उठा था, जो अब भी गरमाया हुआ है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नतीजे घोषित करने के आदेश के संदर्भ में सरकार की मुश्किलें बढ़ी हुई तो रहेंगी ही, अन्य और भी कई मुद्दे सरकार को परेशान करते रहेंगे।
12 अगस्त तक इस सत्र के चलने की संभावना है। मंगलवार को आम बजट पेश किया जाएगा जो नयी सरकार का पहला बजट होगा। इसे मोदी सरकार की पहली परीक्षा बतलाई जा रही है। भाजपा सरकार जिन दो दलों के समर्थन पर मुख्यतया टिकी हुई है, वे दोनों ही केंद्र सरकार से भारी-भरकम आर्थिक पैकेजों की अपेक्षा कर रहे हैं। आंध्रप्रदेश की तेलुगु देसम पार्टी और बिहार का जनता दल यूनाइटेड क्रमशः 16 तथा 12 सांसदों के साथ इस उम्मीद से समर्थन दे रहे हैं कि उन्हें विशेष राज्य का दर्जा दिया जाएगा।
हालांकि अब राज्य की यह श्रेणी एक प्रकार से अस्तित्व में नहीं रह गई है, लेकिन उसकी भरपाई अगर बड़ी राशि प्रदान करने से होती है तो अन्य राज्यों में सरकार एवं भाजपा के प्रति असंतोष बढ़ेगा, विशेषकर जिन राज्यों में भाजपा को शानदार सफलता लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मिली है। ये राज्य हैं- छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, ओडिशा आदि। यदि उनके साथ भेदभाव हुआ तो पार्टी अनुशासन के चलते इसकी खुली प्रतिक्रिया चाहे न हो, लेकिन असंतोष बढ़ेगा। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार को साधना चुनौती रहेगी।
यह सत्र ऐसी परिस्थितियों में हो रहा है जब न सिर्फ सरकार कमजोर है, बल्कि हाल के कई घटनाक्रम इस बात की ओर साफ इशारा कर रहे हैं कि नरेंद्र मोदी और उनके मुख्य सिपहसालार यानी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की संगठन पर पकड़ छूटती जा रही है। अनेक नेताओं के बयान इस बात की गवाही दे रहे हैं। हालांकि स्थिति फिलहाल विस्फोटक तो नहीं कही जा सकती लेकिन यदि ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं होगा कि दोनों पहले संगठन पर और फिर सरकार पर अपना नियंत्रण खो बैठेंगे। हाल ही में कुछ नेताओं ने जिस प्रकार की बयानबाजियां की हैं वे या तो पार्टी की घोषित नीति के खिलाफ हैं या फिर उनके तीरों की दिशा मोदी-शाह की ओर है। भारतीय जनता पार्टी द्वारा किए जा रहे कुछ कार्यक्रम भी यही बता रहे हैं कि मोदी-शाह की जकड़ अब संगठन पर वैसी नहीं दिख रही है जो कुछ समय पहले तक थी।