शकील अख्तर
इस समय देश में दो यात्राएं चल रही हैं। एक अमरनाथ यात्रा, जो पूरी मुस्लिम आबादी के बीच से होती हुई जाती है, और दूसरी कांवड़ यात्रा, जो अधिकांश हिंदू आबादी के बीच से होती हुई निकलती है। जहां बीच-बीच में मिली-जुली आबादी भी है। अमरनाथ यात्रा सैकड़ों साल पुरानी है। यह तब भी नहीं रुकी जब कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था। जम्मू से कश्मीर होकर जाने का ही मार्ग है। एक बार पाक समर्थित हिजबुल मुजाहिदीन ने यात्रा रोकने की धमकी दी थी। आश्चर्यजनक रूप से दूसरा सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन जेकेएलएफ (जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) हिजबुल के सामने खड़ा हो गया। जेकेएलएफ ने बाकायदा प्रेस नोट जारी करके कहा कि हम यात्रा को सुरक्षा देंगे। और अगर हिजबुल ने कोई गलती करने की कोशिश की तो उसे इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ेगा। यात्रा हुई। कश्मीर के मुसलमानों ने यात्रा का जबर्दस्त स्वागत किया। शान से हुई। और अभी भी चल रही है। रक्षाबंधन के दिन 19 अगस्त को खत्म होगी। यह है हमारे देश की मिली-जुली संस्कृति। “हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा।”
दूसरी तरफ इस बार कांवड़ यात्रा में खुद सरकार विवाद पैदा कर रही है। आजादी को रोकने के लिए अंग्रेजों ने जो हिन्दू पानी-मुस्लिम पानी, हिन्दू चाय-मुस्लिम चाय शुरू की थी, वही अब भाजपा सरकार कर रही है। कांवड़ यात्रा रूट पर मुसलमानों से कहा जा रहा है कि अपने खाने-पीने की दुकानों, यहां तक कि फलों के ठेले पर भी अपना नाम लिखकर टांगे। दलील दी गई है कि कांवड़धारियों की आस्था की पवित्रता को बनाए रखने तथा कांवड़ियों की शांतिपूर्ण आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए आधिकारिक तौर पर यह कदम उठाया गया है। इसके अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हलाल-प्रमाणित उत्पाद बेचने वाले विक्रेताओं के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी है। इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए विपक्षी दलों के नेताओं और अन्य संप्रदायों के लोगों ने आदेश को अल्पसंख्यकों को अलग-थलग करने की कोशिश बताया है।
दरअसल, एक पखवाड़े से अधिक समय तक चलने वाली कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों और दुकानदारों के बीच अक्सर हिंसा देखने में आती रही है। जिसकी मुख्य वजह यह रही है कि कांवड़ियों और दुकानदारों के बीच मांसाहारी भोजन को लेकर बहस और विवाद होता रहा है। यही वजह है कि अगस्त 2018 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कांवड़ यात्रा के दौरान भड़की हिंसा और टकराव में निजी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की घटनाओं को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया था। इतना ही नहीं, वर्ष 2022 में हरिद्वार में हरियाणा के कांवड़ियों के साथ हुए विवाद में सेना के एक जवान की कथित तौर पर हत्या कर दी गई थी।
निस्संदेह, कांवड़ यात्रा के दौरान विभिन्न प्रकार के टकरावों से बचने के लिए राज्य सरकारों का दायित्व बनता है कि यात्रा मार्ग पर पर्याप्त संख्या पर पुलिसकर्मियों को तैनात करे ताकि किसी भी प्रकार की हिंसा और गड़बड़ी को टाला जा सके। लेकिन एक बात तय है कि अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित दुकानों को चिन्हित करने से न केवल सांप्रदायिक अलगाव को बढ़ावा मिलेगा, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि इससे कांवड़ियों और राहगीरों के बीच कोई टकराव नहीं होगा।
दूसरी ओर केंद्र में सत्तारूढ़ राजग सरकार में शामिल भाजपा के दो सहयोगियों जनता दल यूनाइटेड और लोक जनशक्ति पार्टी ने भी यूपी सरकार के इस आदेश की आलोचना की है। वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस आदेश को असंवैधानिक बताया है। यह साफ है कि उत्तर प्रदेश में हाल के लोकसभा चुनावों में ध्रुवीकरण की रणनीति भाजपा के लिए लाभदायक साबित नहीं हुई थी। लेकिन पार्टी राज्य में होने वाले विधानसभा उपचुनाव से पहले इसे फिर आजमाने के प्रलोभन से बच नहीं पाई है। दरअसल, चुनावी उलटफेर के बाद अपेक्षित चुनाव परिणाम हासिल न कर पाने वाली भाजपा अपने निराश बहुसंख्यक मतदाताओं को फिर अपने पाले में करने के लिए लालायित नजर आ रही है।