यमुना नदी की स्वच्छता की उम्मीदें लगातार टूटती जा रही हैं, जबकि नदी का प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। यह समस्या केवल यमुना के जल में पाई जाने वाली जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD), रासायनिक ऑक्सीजन मांग (COD), और फीकल कोलीफार्म जैसे प्रदूषक तत्वों तक सीमित नहीं है। इसके अलावा, लेड, कॉपर, जिंक, निकेल, कैडमियम और क्रोमियम जैसे हानिकारक धातु तत्व भी यमुना में पाए जा रहे हैं, जो गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं।
दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से यमुना में बिना उपचार किए हुए सीवेज के बहाव से जल में सर्फेक्टेंट्स और फॉस्फेट की मौजूदगी के कारण झाग बनते हैं, जो त्वचा रोग और संक्रमण को बढ़ावा देते हैं। इसके समाधान के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की तकनीक को उन्नत करने और उनकी क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता बताई गई है। इसके अलावा, उद्योगों को साझा अपशिष्ट उपचार संयंत्रों से जोड़ने की सिफारिश की गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, यमुना में पर्यावरणीय प्रवाह (ई-फ्लो) बनाए रखने की आवश्यकता है, ताकि नदी की पारिस्थितिकी को संरक्षित रखा जा सके। 2019 में राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की ने सिफारिश की थी कि यमुना में 43.7 करोड़ गैलन पानी रोजाना छोड़ा जाना चाहिए, लेकिन इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
पिछले पांच वर्षों में यमुना की स्थिति और खराब हो चुकी है। करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद अमोनिया और बीओडी के स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है। दिल्ली में यमुना का हिस्सा 80 प्रतिशत प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है, जिससे नदी में जल प्रवाह इतना कम हो चुका है कि यह न तो स्नान योग्य है और न ही पारिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए पर्याप्त है।
राजनीतिक दलों ने यमुना के प्रदूषण पर ध्यान नहीं दिया है। यमुना शुद्धिकरण के लिए सरकारों की घोषणाएं केवल वादों तक सीमित रही हैं, जबकि यमुना में प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है।