एमपॉक्स संक्रमण से जूझ रहे लोगों का पता लगाना आसान नहीं है। डर और कलंक के कारण मरीज लक्षण दिखने के तुरंत बाद चिकित्सा सहायता नहीं लेते हैं। इसके प्रमुख लक्षणों में दर्दनाक दाने, बुखार, मांसपेशियों में दर्द और गले में खराश शामिल हैं। गलत सूचना तेजी से फैल रही है। डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्य सेवा कर्मी न केवल बीमारी से लड़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, बल्कि वे उन बड़ी समस्याओं से भी जूझ रहे हैं, जिन पर उनका बहुत कम नियंत्रण है।
एमपॉक्स के फिर से उभार ने दुनिया को याद दिलाया है कि यह बीमारी व्यक्तिगत और सामुदायिक स्वास्थ्य के लिए कितनी खतरनाक है। लेकिन ऐसे संकटों को बढ़ाने वाले कारकों पर कम ध्यान दिया गया है, खासकर अफ्रीका में। कई अफ्रीकी देशों की व्यापक सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों के कारण ये और भी बदतर हो गए हैं, जिससे ऐसी कमजोरियां उजागर हुई हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य से आगे तक फैली हुई हैं।
लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो ने हैजा, इबोला और कोविड-19 जैसे प्रकोपों का सामना किया है। अब यह अफ्रीका में फैले एमपॉक्स प्रकोप के केंद्र में है। इस साल कांगो में 17,000 से ज्यादा मामले और 500 से ज्यादा मौतें दर्ज की गई हैं, जो कि महाद्वीप में सबसे ज्यादा मामले और मौतें हैं। ये क्षेत्र, जो पहले से ही संघर्ष, विस्थापन और स्वास्थ्य ढांचे के पतन से जूझ रहे हैं, व्यापक और घातक एमपॉक्स प्रकोप का अतिरिक्त तनाव झेल रहे हैं। नए एमपॉक्स स्ट्रेन के उभरने से यह चुनौती और जटिल हो गई है।
कोई भी शारीरिक संपर्क वायरस के संचरण का कारण बन सकता है। यानी सशस्त्र संघर्ष से विस्थापित हुए सैकड़ों हजारों लोगों के भीड़-भाड़ वाले शिविर बड़े पैमाने पर बीमारी फैलने के संभावित केंद्र हैं। ये विस्थापित परिवार संघर्ष के आघात से जूझ रहे हैं, और अब उन्हें बीमारी से भी निपटना होगा। पूरे देश में स्वास्थ्य सेवाकर्मी, जो एमपॉक्स के खिलाफ संघर्ष में अग्रिम पंक्ति के रक्षक हैं, सीमित संसाधनों के साथ देखभाल प्रदान करने के लिए जूझ रहे हैं। सशस्त्र विद्रोहियों और देश की सेना के बीच युद्ध ने बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया है और आवश्यक सेवाओं तक पहुंच को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। विस्थापन और मानवाधिकार उल्लंघन से त्रस्त आबादियां एमपॉक्स जैसी महामारी के लिए बेहद संवेदनशील हो गई हैं।
जब तक इन आबादियों को परेशान करने वाली सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता, तब तक एमपॉक्स इस क्षेत्र से खत्म नहीं होगा। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और अफ्रीका की सीडीसी ने एमपॉक्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया है, लेकिन अब तक किए गए उपाय महाद्वीप में इतने बड़े संकट को संबोधित करने के लिए अपर्याप्त हैं। एमपॉक्स वैक्सीन का वितरण असमान रहा है। टीकों की उच्च लागत बीमारी की रोकथाम के प्रयासों को और बाधित कर सकती है, खासकर दक्षिण किवु में, जहां इसकी सबसे अधिक जरूरत है।
डब्ल्यूएचओ ने यूनिसेफ और वैश्विक वैक्सीन गठबंधन गावी जैसे अपने भागीदारों को डब्ल्यूएचओ द्वारा औपचारिक रूप से स्वीकृति दिए जाने से पहले एमपॉक्स टीके खरीदने की अनुमति दी है, यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। एमपॉक्स प्रकोप के सबक स्पष्ट हैं-व्यापक सामाजिक संदर्भ को संबोधित किए बिना स्वास्थ्य संकटों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित नहीं किया जा सकता है। दुनिया को यह पहचानना चाहिए कि कांगो जैसे स्थानों में, जहां संघर्ष और बीमारी एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।