कुमार रहमान
भारत में मौसम के जितने शेड्स और विविध रंग हैं, उतने शायद ही किसी और मुल्क में मिलते हों। यहां हर मौसम का अपना महत्व है और उसका उत्सव मनाने का अंदाज भी अलग है। ऋतुओं के हिसाब से पर्व, त्योहार और उत्सव होते हैं। खान-पान से लेकर जीवनशैली तक में मौसम के अनुसार बदलाव आते हैं। इन दिनों देश पर भादो मास का खुमार और वर्षा ऋतु का उल्लास छाया हुआ है।
भादो: प्रेम और विरह का मास
भादो मास, जो 20 अगस्त से शुरू होकर 17 सितंबर को समाप्त हो जाएगा, वर्षा ऋतु का अंतिम मास है। यह मास न सिर्फ वर्षा का उत्साह लेकर आता है, बल्कि इसमें एक प्रकार की रूमानियत भी होती है। साहित्य और फिल्मी गीतों में भी भादो को लेकर अनेक रचनाएं हुई हैं। यह मास प्रेमियों के लिए खास माना गया है। भादो की बूंदें प्रेमियों को अपने रस में भिगो देती हैं और उनका मन खिला-खिला सा हो जाता है।
सावन और भादो का महत्व
वर्षा ऋतु के दो प्रमुख मास होते हैं: सावन और भादो। सावन के बाद जब भादो आता है, तो बादल उमड़ते-घुमड़ते हैं, सूरज छिप जाता है, और पूरी कायनात मदमस्त हो जाती है। पेड़-पौधे झूमने लगते हैं, पंछी कोलाहल करते हैं, और पपीहा अपने पी को पुकारता है। भादो की बारिश बड़ी ही मद्धम और संगीतमय होती है। यह ऐसा मास है जब प्रेम और विरह दोनों का गहरा अनुभव होता है।
जायसी का ‘बारहमासा’
साहित्य में भी भादो को प्रेम और विरह का मास माना गया है। मलिक मोहम्मद जायसी की रचना ‘बारहमासा’ में भादो मास का सीजव चित्रण किया गया है, जिसमें विरह का दर्द बखूबी उकेरा गया है। जायसी ‘बारहमासा’ में कहते हैं:
“चढा आसाढ़, गगन घन गाजा साजा विरह दूंद दल बाजा
सावन बरस मेह अति पानी भरनि परी, हौं विरह झुरानी
भा भादो दूभर अति भारी कैसे भरौं रैन अधियारी”
अर्थात, अषाढ़ मास में बादल उमड़ते हैं, सावन में वर्षा होती है, और भादो में विरह का दर्द अत्यधिक हो जाता है।
भादो का रुतबा
भादो मास में न सिर्फ प्रेमियों के दिल धड़कते हैं, बल्कि पूरी प्रकृति एक नए रंग में रंग जाती है। खेत-खलिहान हरे-भरे हो जाते हैं, नदियों में जल का प्रवाह तेज हो जाता है, और वातावरण में शीतलता फैल जाती है। यह मास जहां वर्षा ऋतु का अंत लेकर आता है, वहीं शरद ऋतु की शुरुआत की भी सूचना देता है।