लेखक: राजेंद्र शर्मा

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही सांप्रदायिकता का आरोप

मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल के पहले लगभग पचास दिनों में ही, अपनी नीतियों और गतिविधियों से यह स्पष्ट कर दिया है कि उसे हर संकट से उबरने के लिए सांप्रदायिक ताप बढ़ाने का ही रास्ता दिखाई देता है। उत्तर प्रदेश से शुरू हुए इस सांप्रदायिकता के सबसे खुलेआम प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया है। राज्य में भाजपा और उसके सहयोगियों को लोकसभा चुनावों में भारी हार का सामना करना पड़ा, जिसमें पार्टी की सीटें 2019 के मुकाबले काफी घट गईं।

चुनावी नतीजों के बाद का संकट

चुनावी नतीजों में भाजपा की हार ने राज्य में पार्टी नेतृत्व की अंदरूनी खींच-तान को बढ़ा दिया है। संघ-भाजपा द्वारा आयोजित समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच खींच-तान स्पष्ट रूप से देखने को मिली। आदित्यनाथ ने हार का दोष अपने लोगों के अति-आत्मविश्वास पर मढ़ा, जबकि मौर्य ने पार्टी और संगठन की आलोचना करते हुए कहा कि पार्टी सरकार से ऊपर है।

सांप्रदायिकता का बढ़ता ताप

मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने अपनी घेरेबंदी की काट के लिए सांप्रदायिक ताप बढ़ाने का रास्ता अपनाया। मुजफ्फरनगर पुलिस ने कांवड़ मार्ग पर दुकानों के साइन बोर्ड पर मालिकों के नाम लिखने का आदेश जारी किया, जिससे मुस्लिम दुकानों की पहचान हो सके। इस आदेश की तुलना हिटलर की जर्मनी में यहूदियों की दुकानों पर उनके यहूदी होने के नोटिस से की जा रही थी। आलोचनाओं के बाद भी आदित्यनाथ सरकार ने इस आदेश को पूरे राज्य में लागू करने की घोषणा की।

सांप्रदायिक आदेशों पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

सुप्रीम कोर्ट ने इन सांप्रदायिक रूप से विभाजनकारी आदेशों पर रोक लगाते हुए कहा कि खाने के प्रकार, जैसे शाकाहारी-मांसाहारी आदि की पहचान कराना पर्याप्त है। हालांकि, संघ-भाजपा से इस रास्ते को छोड़ने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए।

अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा

आम चुनावों के नतीजे आने के बाद से भाजपा शासित राज्यों में मॉब लिंचिंग और अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों पर हमले की घटनाएं बढ़ी हैं। भाजपा नेताओं की घोषणाएं कि अल्पसंख्यकों ने भाजपा को वोट नहीं दिया, इसलिए उन्हें भाजपा राज से कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए, इस सांप्रदायिकता को और बढ़ावा देती हैं।

निष्कर्ष

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही सांप्रदायिकता का आरोप लगाना और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने की घटनाएं, यह साबित करती हैं कि भाजपा राज से अल्पसंख्यकों के लिए कोई उम्मीद करना उचित नहीं होगा। देश में बढ़ती सांप्रदायिकता और अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा ने समाज में भय और असुरक्षा की भावना को और गहरा कर दिया है।