देश में आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं, खासतौर पर छात्रों और व्यापारियों के बीच। आर्थिक संकट, कारोबारी असफलताएं, और सामाजिक दबाव आत्महत्या के बड़े कारणों में से हैं। दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी (डीबीएस) के अध्यक्ष और सोशल वर्कर ब्रदर सोलोमन जॉर्ज के अनुसार, बच्चों को उनकी काबिलियत के अनुसार करियर चुनने की आजादी दी जानी चाहिए। यह एक कड़वा सच है कि सफलता का मापदंड हमारे समाज में केवल अच्छी नौकरी, बड़ा घर और तमाम सुख-सुविधाएं बन गई हैं। यही कारण है कि माता-पिता, अध्यापकों, और समाज का दबाव नौजवानों और कारोबारियों को आत्महत्या की ओर धकेल रहा है।
मनोचिकित्सक, शिक्षाविद, और सामाजिक कार्यकर्ता लगातार इस समस्या के समाधान के लिए काम कर रहे हैं। राजधानी के कई कोचिंग सेंटरों में छात्रों की काउंसलिंग की जा रही है, ताकि वे अत्यधिक दबाव महसूस न करें। बावजूद इसके, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2020 में हर 42 मिनट में एक छात्र ने आत्महत्या की। यह स्थिति और गंभीर तब होती है जब समाज या परिवार की अत्यधिक अपेक्षाएं छात्रों को मानसिक कष्ट में डाल देती हैं।
आत्महत्या के कारणों को समझने के लिए दिल्ली में विश्व आत्महत्या निवारण दिवस पर एक सेमिनार आयोजित किया गया, जिसमें मनोचिकित्सक, पत्रकार, और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने पेपर पढ़े। इसके निष्कर्षों के आधार पर आगे की रणनीति बनाई जाएगी। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय अग्रवाल का मानना है कि आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर चिंता व्यक्त करने के बजाय इन्हें रोकने के उपायों पर काम किया जाना चाहिए।
व्यापारियों में आत्महत्या के मामलों में वृद्धि भी चिंताजनक है। हाल ही में एक साइकिल कंपनी के अरबपति मालिक ने आर्थिक घाटे के कारण खुदकुशी कर ली। 2019 से 2021 के बीच देश में 35,000 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की, और इसमें कोई शक नहीं कि छात्रों पर माता-पिता, शिक्षकों, और समाज का दबाव घातक मानसिक प्रभाव डाल रहा है।
राजस्थान के कोटा शहर जैसे क्षेत्रों में लाखों विद्यार्थी आईआईटी, एनआईटी, और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए आते हैं, लेकिन अत्यधिक दबाव के कारण कई बार यह मानसिक तनाव का कारण बनता है। यह गंभीर समस्या है और इस पर राष्ट्रीय स्तर पर विचार किया जाना आवश्यक है।