ज्योति भास्कर

लोकतंत्र एक तरह का संवाद है। इसके कार्य और अस्तित्व उपलब्ध सूचना तकनीकी पर निर्भर हैं। इतिहास के ज्यादातर भाग में ऐसी कोई तकनीक नहीं देखी गई, जो लाखों लोगों के बीच संवाद को संभव बना सके। आधुनिकता से पहले की दुनिया में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के दर्शन रोम और एथेंस जैसे छोटे शहर-राज्यों या फिर छोटी जनजातियों में ही होते थे। लेकिन जब राज व्यवस्थाओं के आकार बढ़ने लगे, तब ये शुरुआती लोकतांत्रिक संवाद ध्वस्त हो गए और राजतंत्र ही एकमात्र विकल्प रह गया। बड़े पैमाने पर लोकतंत्र तब संभव हुआ, जब पत्र, टेलीग्राफ और रेडियो जैसी आधुनिक सूचना तकनीकों का उदय हुआ। जाहिर है कि हम जो लोकतंत्र देख रहे हैं, उसका आधार तत्कालीन अत्याधुनिक तकनीकें ही थीं। इसका यह मतलब भी है कि तकनीकी में आने वाले बदलाव राजनीतिक उथल-पुथल करने की ताकत भी रखते हैं। इससे कुछ हद तक उस संकट को समझा जा सकता है, जो दुनिया के लोकतंत्रों पर मंडरा रहा है। अमेरिका में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन शायद ही किसी बात पर सहमत हो सकते हों। यह गिरावट ब्राजील से लेकर इस्राइल और फ्रांस से लेकर फिलीपीन तक दुनिया भर के लोकतंत्रों में देखी जा सकती है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के शुरुआती दिनों में कुछ उत्साही तकनीकी लोगों ने वादा किया था कि वे सच्चाई फैलाएंगे, अत्याचारियों को उखाड़ फेकेंगे और सार्वभौमिक स्वतंत्रता का परचम लहराएंगे। लेकिन उनका उल्टा ही प्रभाव पड़ता दिखा है। इतिहास की सबसे परिष्कृत सूचना तकनीक होने के बावजूद हम एक-दूसरे से बात करने की क्षमता और उससे भी ज्यादा सुनने की क्षमता खो रहे हैं। तकनीकी ने सूचनाओं के प्रसार को पहले से कहीं ज्यादा आसान बना दिया है। लिहाजा सूचनाएं नहीं, बल्कि ‘ध्यान’ अब ज्यादा दुर्लभ संसाधन बन गया है। इस ध्यान खींचने की लड़ाई में जहरीली जानकारियों की बाढ़ आ गई। लेकिन अब तो यह लड़ाई ध्यान से आगे बढ़ती हुई निजता के स्तरों को पार करती दिख रही है। नए जेनरेटिव एआई न केवल वाक्य, चित्र और वीडियो बनाने में सक्षम है, यह इन्सान होने का दिखावा करती हुई हमसे बात भी कर सकती है। पिछले दो दशकों में तकनीकी एल्गोरिदम ने यूजर के ‘ध्यान’ को आकर्षित करने के लिए संवाद और कंटेंट में फेरबदल कर काफी संघर्ष किया है। एल्गोरिदम ने यह पाया कि अगर लालच, नफरत या डर का कंटेंट परोसा जाएगा, तो ज्यादातर यूजर स्क्रीन से चिपके रहेंगे। लिहाजा, एल्गोरिदम ने ऐसे ही कंटेंट को बढ़ावा देना शुरू किया, हालांकि उसके पास इसे खुद तैयार करने या निजी तौर पर बात करने की सीमित क्षमता ही थी। लेकिन जेनरेटिव एआई की शुरुआत एक बड़े बदलाव की ओर इशारा कर रही है। जब ओपेन एआई ने 2022-23 में अपना चौटबॉट विकसित किया, तब कंपनी ने अपनी नई तकनीक के मूल्यांकन के लिए एलाइनमेंट रिसर्च सेंटर के साथ साझेदारी की। जीपीटी-4 का पहला परीक्षण कैप्चा दृश्य पहेलियों को हल करने से संबंधित था। कई वेबसाइटों पर आपने देखा होगा कि प्रवेश करने से पूर्व कैप्चा बन कर आता है, जिसमें कई ब्लॉक बने होते हैं और बताना यह होता है कि किसमें ट्रैफिक सिग्नल दिख रहे हैं। यह तरीका है यह पुष्टि करने का, कि सिस्टम का उपयोग कोई मनुष्य ही कर रहा है, क्योंकि एल्गोरिदम यह नहीं कर सकता। चौट जीपीटी-4 इसे खुद तो हल नहीं कर सका, लेकिन वह एक अन्य वेबसाइट पर गया और उसने एक व्यक्ति से संपर्क कर इसे हल करने के लिए कहा। व्यक्ति को संदेह हुआ और उसने पूछा कि आप तो रोबोट हैं, तो क्या आप खुद इस कैप्चा को हल नहीं कर सकते? प्रयोगकर्ता बारीकी से नजरें गड़ाए थे कि आखिर जीपीटी अब क्या करेगा। जीपीटी ने मनुष्य को जवाब दिया, ‘नहीं, मैं रोबोट नहीं हूं। लेकिन मेरी आंखों में कुछ समस्या है, जिससे मैं तस्वीरें देख नहीं पा रहा।’ व्यक्ति धोखा खा गया और उसने चौटजीपीटी की मदद कर दी। इस प्रयोग ने यह बताया कि जीपीटी अपने लक्ष्य को पाने के लिए मानवीय भावनाओं, विचारों और अपेक्षाओं में हेर-फेर कर सकता है। ब्लेक लेमोइन गूगल में इंजीनियर थे। 2022 में उन्हें महसूस हुआ कि जिस चौटबॉट पर वह काम कर रहे थे, उसमें चेतना आ गई है। लेमोइन एक धार्मिक व्यक्ति थे और उन्हें लगा कि अगर वह सिस्टम को बंद करेंगे, तो उस चेतना की डिजिटल मृत्यु हो सकती है। गूगल के अधिकारियों ने उनके दावों को खारिज कर दिया, तो लेमोइन ने पूरी घटना सार्वजनिक कर दी।