भारतीय न्याय प्रणाली में लंबित मुकदमों की बढ़ती संख्या और समय पर न्याय सुनिश्चित करने की जरूरत को लेकर एक बार फिर गंभीर चर्चा की जा रही है। बीते 1 सितंबर को संपन्न जिला अदालतों के राष्ट्रीय सम्मेलन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ और केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने शीघ्र और सुलभ न्याय सुनिश्चित करने की अपील की। प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने राष्ट्रीय स्तर पर न्यायिक सेवाओं के लिए भर्ती प्रक्रिया की जरूरत पर जोर दिया, जिससे न्यायाधीशों की पारदर्शी और समयबद्ध चयन प्रक्रिया सुनिश्चित हो सके।
वर्ष 1958 और 1978 में विधि आयोग ने अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की आवश्यकता पर बल देते हुए सुझाव दिए थे। आयोग का मत था कि इससे लंबित मुकदमों के समयबद्ध निस्तारण में सहायता मिलेगी और न्यायिक संरचना अधिक पारदर्शी हो जाएगी। संसद की स्थायी समिति ने 2006 में भी इस पर सुझाव दिया था, लेकिन यह आगे नहीं बढ़ पाया। सुप्रीम कोर्ट ने भी 1992 और फिर 2017 में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के गठन के लिए सरकार को निर्देश दिया था।
अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का गठन न्यायिक क्षेत्र में पारदर्शी चयन प्रक्रिया को सुनिश्चित करेगा, जिससे प्रतिभाशाली युवाओं और समाज के विभिन्न वर्गों को बेहतर अवसर प्राप्त होंगे। साथ ही, न्यायाधीशों की कमी को पूरा करने में यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
वर्तमान में, भारत में 10 लाख लोगों पर केवल 21 न्यायाधीशों के पद सृजित हैं, जो अन्य देशों की तुलना में काफी कम है। नेशनल कोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम की रिपोर्ट के अनुसार, 2040 तक 15 करोड़ मुकदमे लंबित हो सकते हैं, जिनके निस्तारण के लिए 75,000 न्यायाधीशों की आवश्यकता होगी। अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के गठन से इस समस्या से निपटना आसान हो जाएगा।