इंदिरा गांधी सरकार ने जब 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और पूर्व राजाओं के प्रिवी पर्स समाप्त किए तो जनता को लगा कि वह गरीबी हटाना चाहती हैं और पूंजीपतियों का असर कम करना चाहती हैं। परंतु परिणाम उल्टा निकला। देश में घोटालों की श्रृंखला शुरू हो गई और जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन का आगाज हुआ।

कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी का कहना है कि हम जातीय गणना अवश्य कराएंगे और उसके आंकड़ों के आधार पर जातीय समूहों को आरक्षण देंगे। उन्होंने 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को खत्म करने की बात भी कही। हालांकि, यह सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी की पार्टी सत्ता में आने पर इस कार्य को पूरा कर पाएगी? संभावना नहीं लगती, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत है, जिसके तहत इस तरह के निर्णयों की समीक्षा होती है।

राहुल गांधी का यह वादा, जनता को झांसा देकर वोट लेने की एक कोशिश लगती है। ऐसा झांसा कांग्रेस ने पहले भी दिया था, जब इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था, जो अंततः झूठा साबित हुआ। इंदिरा गांधी के समय में भ्रष्टाचार और घोटालों की संख्या बढ़ी, जिससे जनता का मोहभंग हुआ।

नेहरू सरकार के दौरान भी भ्रष्टाचार के मामलों में सरकार ने कठोर कार्रवाई नहीं की। जैसे कि जीप घोटाला, जहां ब्रिटेन से 2000 जीपें मंगाई गईं, लेकिन केवल 155 जीपें ही आईं, और वे भी खराब हालत में। इसके बावजूद नेहरू सरकार ने इस मामले की न्यायिक जांच नहीं कराई और इस पर पर्दा डाल दिया।

इंदिरा गांधी सरकार ने 1969 में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया, जिससे 1971 में उन्हें लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत मिला। हालांकि, चुनाव जीतने के बाद इंदिरा गांधी ने इस नारे को भुला दिया और अपने व्यक्तिगत हितों की ओर ध्यान दिया।