हिमालय दिवस विशेष: पर्वत से ओम गायब-हिमालय की खराब सेहत का संकेत
जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड के सीमांत जिला पिथौरागढ़ स्थित विश्व विख्यात ओम पर्वत से जब जुलाई महीने के अंत में विशालकाय ’ओम’ की आकृति लुप्त होने लगी तो सनातन धर्मावलम्बियों का विचलित होना स्वाभाविक ही था। यह दिव्य आकृति अगस्त के मध्य तक पूरी तरह गायब हो गयी। धर्मावलम्बी इसे दैवी प्रकोप और अनिष्ट का संकेत मानने लगे। लेकिन पर्यावरणविदों की असली चिन्ता तो जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों को लेकर है जो ओम पर्वत पर साफ नजर आ रहे हैं। यद्यपि बाद में पुनः हिमपात से ‘ओम’ की आकृति फिर प्रकट हो गयी, लेकिन पुनः बर्फ का दिखाई देना चिन्ता मुक्त होने के लिये काफी नहीं है।
खतरनाक संकेत है ओम पर्वत से बर्फ का गायब होना
हिमालय के क्रायोस्फीयर में इस तरह तेजी से बर्फ का पिघलना सीधे-सीधे क्षेत्र के ग्लेशियर तंत्र को प्रभावित करना है। ग्लेशियरों का यही पीछे हटना वैश्विक स्तर पर सरकारों, आपदा प्रबंधकों, भूगर्व और ग्लेशियर वैज्ञानिकों तथा पर्यावरणविदों की चिन्ता का विषय बना हुआ है। हिमालय में ग्लेशियरों के पीछे हटने से जल संसाधन प्रभावित हो रहे हैं, जिससे नदियों का प्रवाह कम हो जाता है और कृषि प्रभावित होती है। इससे ग्लेशियल झीलों के फटने से विनाशकारी बाढ़ का खतरा भी बढ़ रहा है। इसके अलावा, यह क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान को भी बढ़ाता है।
हिमालय के अधिकांश ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं
टाइम मैग्जीन के मैन ऑफ द ईयर रहे वाडिया हिमालयी भूविज्ञान संस्थान से ग्लेशियॉलॉजिस्ट डा0 डीपी. डोभाल के अनुसार जलवायु परिवर्तन के इस दौर में हिमालय में 70 प्रतिशत से अधिक ग्लेशियर 5 वर्ग किमी. से कम क्षेत्रफल वाले हैं और ये छोटे ग्लेशियर ही तेजी से गायब हो रहे हैं। राज्यसभा में जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह द्वारा 25 जुलाई 2024 को दी गयी जानकारी के अनुसार सरकार ग्लेशियल झीलों के खतरे से चिन्तित है और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय आदि विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के माध्यम से हिमालयी ग्लेशियरों पर निगरानी और समस्या समाधान के उपाय कराये जा रहे हैं।
ग्लेशियल झीलों के फटने का खतरा
हिमालय पर हिमानी झीलों (ग्लेशियल लेक) की संख्या बढ़ने और उनके विस्तार के साथ ही उनके फटने का खतरा भी बढ़ रहा है। ये ‘ग्लेशियल लेक आउट ब्रस्ट’ विनाशकारी होते हैं और इसीलिये इनकी तुलना विघ्वंशकारी एटम बमों से की जाती है। जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के एक अध्ययन के अनुसार सन् 2013 से लेकर 2023 तक ग्लेशियल झीलों के फटने की 4 बड़ी घटनाऐं हो चुकी हैं जिनमें उत्तराखण्ड हिमालय में दो (2013 और 2021), लद्दाख में एक (2021) और सिक्किम में एक (2023) शामिल हैं।
हिमालय पर खतरे की स्थिति
यूनिवर्सिटी ऑफ पोट्सडम, जर्मनी के इंस्टीट्यूट ऑफ जियो साइंस तथा इंस्टीट्यूट आफ इनवायर्नमेंटल साइंस एण्ड जियॉलाजी के एक साझा अध्ययन में हिमालय पर मोरैन द्वारा रोकी गयी ग्लेशियल लेकों की संख्या 5 हजार से अधिक बतायी गयी और इनमें से कई सुप्रा टाइप की झीलों के फटने से 21वीं सदी में ही सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिनों में विनाशकारी बाढ़ की आशंका जताई गयी।