प्रशांत किशोर (पीके) का राजनीतिक सफर बहुत दिलचस्प रहा है। बिहार के रोहतास जिले के कोनार गांव में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे पीके ने इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ में आठ साल तक सेवाएं दीं। इसके बाद उन्होंने भारत लौटकर ‘सिटीजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस’ (सीएजी) नाम की कंपनी बनाई। कुछ समय बाद उन्होंने चुनावी रणनीति तैयार करने वाली नई कंपनी आई-पैक की स्थापना की और गुजरात विधानसभा चुनाव में अपनी पहली बड़ी भूमिका निभाई। यहां से उनके सफल रणनीतिकार के रूप में सफर की शुरुआत हुई।

प्रशांत किशोर ने 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए रणनीतिकार की भूमिका निभाई, जिसने भाजपा को अपने दम पर केंद्र में सरकार बनाने में मदद की। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस, जद(यू), वायएसआर कांग्रेस, टीएमसी, आप और अन्य दलों के लिए चुनावी रणनीतियां तैयार कीं और उन्हें सत्ता में लाने में योगदान दिया।

अब पीके खुद राजनेता बनने की ओर अग्रसर हैं और उन्होंने ‘जन सुराज पार्टी’ की स्थापना की है। बिहार की जातिवादी राजनीति में उन्होंने नई दिशा देने का वादा किया है, और उनकी पार्टी राज्य के सभी 243 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। पीके की राजनीतिक विचारधारा जातीय समरसता, मानवता, और विकास पर आधारित है।

उन्होंने बिहार की शराबबंदी को खत्म करने और शराब से प्राप्त टैक्स को शिक्षा और विकास के कार्यों में लगाने की बात की है। पीके का मानना है कि बिहार में रोजगार की कमी को दूर करने के लिए भूमि सुधार और शिक्षा पर जोर देना जरूरी है। उन्होंने राज्य को विशेष दर्जा न देने की भी वकालत की है।

प्रशांत किशोर का यह राजनीतिक सफर कितना सफल होगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन उन्होंने बिहार की राजनीति में एक नई ऊर्जा और विमर्श को जरूर जन्म दिया है।