यौन हिंसा और उसके प्रभावों को समाप्त करने के लिए समाज में व्यापक रूप से मानसिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक बदलाव की आवश्यकता है। कोलकाता में आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुई एक प्रशिक्षु डॉक्टर की हत्या और बलात्कार की घटना ने समाज में यौन हिंसा के प्रति गंभीर चिंता उत्पन्न की है। यह घटना बताती है कि हमारे समाज में ‘विषाक्त मर्दानगी’ जैसी विकृत मानसिकता को जड़ से उखाड़ने की आवश्यकता है।
यौन हिंसा केवल कानून के माध्यम से समाप्त नहीं की जा सकती, बल्कि इसके लिए समाज के हर वर्ग में शिक्षा और नैतिक मूल्यों की जागरूकता आवश्यक है। इसके लिए सबसे पहले ‘विषाक्त मर्दानगी’ की सोच को चुनौती दी जानी चाहिए। इस विकृत मानसिकता के तहत मर्दों को सख्त, आक्रामक और प्रभुत्वशाली होने की शिक्षा दी जाती है, जिसमें सहानुभूति, देखभाल और सहिष्णुता का अभाव होता है।
हमारे समाज में यौन हिंसा और महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों के खिलाफ एक स्थायी आंदोलन की आवश्यकता है, जो स्कूलों, कॉलेजों और परिवारों से शुरू हो। लड़कों को यह सिखाना जरूरी है कि हिंसा और आक्रामकता मर्दानगी के लक्षण नहीं हैं। इसके विपरीत, उन्हें संवेदनशीलता, सहानुभूति और समानता के मूल्य सीखने चाहिए। इसी तरह, लड़कियों को आत्मनिर्भर, शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनने की शिक्षा दी जानी चाहिए।
यौन हिंसा के खिलाफ लड़ाई केवल कानूनी कार्रवाई से संभव नहीं होगी। इसके लिए समाज में एक क्रांतिकारी बदलाव की आवश्यकता है, जो हमारे शिक्षा तंत्र, परिवार और सामाजिक संरचनाओं में होना चाहिए।