लेखिका किरण बदोनी अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि एक समय था जब वह और उनका परिवार हर साल अपने गांव, टिहरी गढ़वाल जाया करते थे। गांव की सरल और शांतिपूर्ण जिंदगी उन्हें बहुत आनंद देती थी। लेकिन अब सुविधाओं की कमी ने पहाड़ों के निवासियों को अपने घर छोड़कर शहरों की ओर जाने के लिए मजबूर कर दिया है। उन्होंने खुद उच्च शिक्षा के लिए अपनी मिट्टी छोड़ी, लेकिन अब उन्हें समझ आता है कि पहाड़ी जीवन की खास पहचान कम साधनों में संतोष करना और सरलता से जीना है।

उत्तराखंड में बाह्य-प्रवासन की समस्या तेजी से बढ़ रही है, खासकर 2001 से 2011 के बीच, जहां ग्रामीण जनसंख्या में 7% की कमी आई, जबकि शहरी जनसंख्या लगभग 35% बढ़ गई। इसका मुख्य कारण है बुनियादी सुविधाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और रोजगार के अवसरों की कमी। प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं भी पलायन का एक प्रमुख कारण हैं।

सरकार ने प्रयास किए हैं, लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैं। प्राथमिक स्कूल खुलते हैं, लेकिन माध्यमिक स्कूलों की कमी गांव के बच्चों को मजबूर कर देती है कि वे शहरों की ओर पलायन करें। यही स्थिति कॉलेजों और अस्पतालों की है। रोजगार के अवसर भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पाए हैं।

लेखिका यह भी गर्व करती हैं कि पहाड़ी लोग अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए कठिन परिश्रम करते हैं, चाहे वह सड़कों पर सामान बेचना हो या ढाबे में काम करना। अगर पहाड़ों में शिक्षा के साधन बेहतर हो जाएं, तो नौकरियों के अवसर भी बढ़ सकते हैं।

पलायन रोकने के लिए छोटे-छोटे रोजगार के साधनों को बढ़ावा देना होगा। लोगों की बातों को सुनकर हर तीन महीने में टीवी, रेडियो, फेसबुक और ट्विटर जैसे माध्यमों से कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए।

लेखिका उत्तराखंड सरकार द्वारा फ्री बस यात्रा की सुविधा की सराहना करती हैं और सुझाव देती हैं कि स्कूल और कॉलेजों में आधुनिक शिक्षा के साथ कौशल विकास को भी अनिवार्य किया जाए। अंत में, वह युवाओं से आग्रह करती हैं कि वे पहाड़ों की समस्याओं को समझें और पलायन को रोकने के लिए प्रयास करें, ताकि आने वाली पीढ़ी को अपने घर और मिट्टी से जुड़ाव बना रहे।