यह लेख मानवीय संवेदनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका और उनके मूल्य को उजागर करता है। लेखक डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ ने इसे बेहद प्रभावी ढंग से समझाया है कि कैसे व्यक्ति की संवेदनशीलता उसे सच्ची मानवता की ओर ले जाती है, जबकि पद, दौलत, और अहंकार व्यक्ति को केवल खोखला बना सकते हैं।
लेख में एक आईएएस अधिकारी टीएन शेषन के संस्मरण का जिक्र है, जिसमें शेषन और एक अनपढ़ लड़के के बीच का संवाद सामने आता है। यह कहानी उस लड़के की संवेदनशीलता को दर्शाती है जिसने एक पक्षी के घोंसले को उतारने से मना कर दिया क्योंकि उसमें बच्चे थे, और उसे यह चिंता थी कि उनकी मां जब लौटेगी तो उदास हो जाएगी। शेषन, जो एक पढ़े-लिखे और प्रतिष्ठित अधिकारी थे, इस लड़के की सोच और संवेदनाओं से बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने महसूस किया कि डिग्रियां, पद और प्रतिष्ठा के बावजूद उनके पास वह भावनात्मक गहराई नहीं थी जो उस अनपढ़ लड़के के पास थी।
इस लेख का मुख्य संदेश यही है कि संवेदनशीलता और मानवीय भावनाएं व्यक्ति के जीवन में सबसे बड़ी निधि होती हैं। चाहे व्यक्ति कितना भी शिक्षित, प्रतिष्ठित या धनवान क्यों न हो, अगर उसमें संवेदनाएं नहीं हैं तो वह केवल एक “जिंदा लाश” के समान है। लेखक ने इस विचार को रेखांकित किया कि मानवीय संवेदनाओं के बिना व्यक्ति का जीवन अधूरा है, और जीवन में सच्ची आनंद की प्राप्ति तभी होती है जब व्यक्ति बुद्धि, धन और पद के साथ संवेदनशील भी हो।
इस लेख का अंत एक सुंदर गीत के अंश से होता है, जो यह संदेश देता है कि जगत के लिए जीना ही सच्ची मानवता है। यह लेख हमें अपनी संवेदनाओं को जाग्रत करने और उन्हें संजोने की प्रेरणा देता है, क्योंकि यही हमें एक सच्चा इंसान बनाती हैं।