विनोद पाठक

जयपुर के कंगला गैंग से जुड़े अपराधी काले रंग की बाज बनी हुई टी-शर्ट पहनकर वारदात को अंजाम दे रहे थे। इनमें अधिकांश युवा ग्रामीण पृष्ठभूमि के हैं, जो 100 सीसी की बाइक से गांव से सुबह जयपुर आते थे। गैंग मोबाइल का मॉडल बताने पर उसे लूट लेता था।

वर्ष 2004 में बॉलीवुड फिल्म धूम आई थी, जिसमें हीरो अपने गैंग के साथ बाइक पर चोरी करने निकलता था। फिल्म धूम का गाना ‘धूम मचाले धूम’ बहुत प्रसिद्ध हुआ था। फिल्म धूम को देखकर कई युवाओं में बाइक से चोरी और लूट करने का क्रेज बढ़ा। हालांकि, इसका कोई सटीक आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन बाइक से चेन, मोबाइल आदि लूटने वाले युवा विभिन्न शहरों में पकड़े गए। जयपुर में ऐसा एक गैंग पकड़ा गया है, जिसने सबको चौंका दिया है। यह गैंग फिल्म धूम की तर्ज पर लूट कर रहा है। गैंग का नाम सरगना ने कंगला रखा और सोशल मीडिया के माध्यम से गैंग में भर्ती हो रही थी। गैंग से डेढ़ सौ युवा जुड़ गए।

ऐसे गैंग पनपने के पीछे बेरोजगारी एक बड़ा कारण है या युवाओं में बढ़ते महंगे शौक, यह शोध का विषय है। फिल्मों के साथ अपराध के प्रति प्रेरित करने का बड़ा कारण ओटीटी प्लेटफॉर्म पर क्राइम वेब सीरीज भी हैं। जयपुर के कंगला गैंग से जुड़े अपराधी काले रंग की बाज बनी हुई टी-शर्ट पहनकर वारदात को अंजाम दे रहे थे। इनमें अधिकांश युवा ग्रामीण पृष्ठभूमि के हैं, जो 100 सीसी की बाइक से गांव से सुबह जयपुर आते थे। गैंग मोबाइल का मॉडल बताने पर उसे लूट लेता था। मोबाइल को मात्र 5000-8000 रुपए में दूसरे गैंग को बेच देता था। गैंग का जो सरगना पुलिस की गिरफ्त में आया है, वो ग्रेजुएट है। गैंग के अन्य बदमाश अभी पुलिस की पकड़ से दूर हैं। पढ़-लिखकर नौकरी या कोई व्यवसाय करने के बजाय संगठित रूप से इकट्ठा होकर चोरी और लूट की वारदात कर रहे ऐसे युवा निश्चित ही समाज के लिए बड़ा खतरा हैं।

पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। पुलिस के समक्ष मुश्किल यह भी है कि कुछ दिन जेल में रहने के बाद ऐसे बदमाशों को कोर्ट से जमानत मिल जाती है। ये दोबारा ऐसी घटनाओं का अंजाम नहीं देंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं ले सकता। आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है? जो ऐसे युवा मेहनत करने के बजाय गलत रास्ते को चुन रहे हैं। एक कारण बेरोजगारी का नजर आता है। ताजा आंकड़ों में देश में बेरोजगारी की दर 6.7 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है, यानी सभी पढ़े-लिखे युवाओं के लिए रोजगार पाना बेहद मुश्किल हो गया है। दूसरा कारण ग्लैमर है। युवाओं में महंगे शौक बढ़े हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।

सोशल मीडिया, ओटीटी प्लेटफॉर्म, बॉलीवुड और हॉलीवुड की फिल्मों से भी युवा आइडिया ले रहे हैं। खासकर ओटीटी की क्राइम वेब सीरीज का क्रेज युवाओं में बहुत बढ़ चुका है। देश में कई ऐसी वारदात का खुलासा पुलिस ने किया है, जो ओटीटी वेब सीरीज से प्रेरित होकर की गई थीं। सरकार से यह मांग समय-समय पर होती आ रही है कि वो फिल्मों और ओटीटी प्लेटफॉर्म के कंटेंट को फिल्टर करने का सिस्टम बनाए, जो युवाओं को अपराध करने के लिए प्रेरित करती हैं या उन्हें कमाई का शॉर्टकट बताती हैं, लेकिन अब तक इस पर कंट्रोल करने का कोई भी ठोस सिस्टम सरकार की तरफ से नहीं बनाया गया है। कमाल की बात यह है कि चोरी के आइडिया देती हुई फिल्म धूम के पहले पार्ट के बाद दो और पार्ट रिलीज हो गए, जिसमें हीरो चोर ही बना और चोरी के आइडिया दिए गए।

युवाओं को अपराधों से दूर करने में समाज का रोल भी बहुत बड़ा है। खासकर परिवार के स्तर पर युवा को अपराधी बनने से रोका जा सकता है। यदि परिवार के लोग अपने बच्चे पर नजर रखें। उसके महंगे शौक पर तहकीकात करें, आखिर पैसा कहां से आ रहा है? बच्चा क्या करता है? कहां जाता है? निश्चित रूप से परिवार इस दायित्व को निभाकर बच्चे को सही राह पर ला सकता है। बेरोजगारी को लेकर तो सरकार चिंतित नजर आ रही है। अभी पेश केंद्रीय बजट में सरकार ने पढ़े-लिखे बेरोजगारों के लिए कई घोषणाएं की हैं। देश की शीर्ष 500 कंपनियों में एक करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप कराई जाएगी। मुद्रा योजना के माध्यम से स्वरोजगार को बढ़ावा दिया जा रहा है। स्टार्ट अप की योजनाएं सरकार लाई है। इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देकर रोजगार सृजित करने की बात है।

यह उपाय तो ठीक हैं, लेकिन फिल्मों और ओटीटी के कंटेंट पर भी नजर बनाकर सरकार अपराधों पर लगाम लगा सकती है। फिर गलत रास्ता चुनने वाले युवाओं को समझना चाहिए कि अपराध की जिंदगी बहुत छोटी होती है।