यह महज संयोग है कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मास्को में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और वियना में ऑस्ट्रिया के चांसलर कार्ल नेहमर के साथ वैश्विक शांति के लिए बुद्ध के उपदेशों पर चर्चा करते हुए अपनी बात को दोहरा रहे थे कि यह युद्ध का समय नहीं है, लगभग उसी समय वाशिंगटन में अमेरिका की अगुवाई वाले नाटो के सदस्य देश रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध में घी डालने का काम कर रहे थे। उनका विश्वास है कि रूस युद्ध का समर्थक है और उसने यूक्रेन पर आक्रमण किया है। इतना ही नहीं, रूस यूरोप सहित पूरी दुनिया की सुरक्षा के लिए चुनौतियां पेश कर रहा है।

इसलिए नाटो देशों ने घोषणा की है कि अगले एक वर्ष के दौरान यूक्रेन को 40 अरब यूरो डॉलर की सैन्य सहायता दी जाएगी। फरवरी 2022 से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है जिसमें हजारों निर्दोष नागरिक मारे गए हैं। यह सब जानते हुए भी अमेरिका और पश्चिमी देश रूस को चिढ़ाने का काम कर रहे हैं। अमेरिका यूक्रेन को अभी तक 50 अरब डॉलर से अधिक की सैन्य सहायता दे चुका है। हाल में उसने घोषणा की है कि वह 2026 में जर्मनी में लंबी दूरी की मिसाइलें तैनात करेगा। इसका उद्देश्य रूस की चुनौतियों का सामना करना है। इसका स्पष्ट मतलब है कि अमेरिका और पश्चिमी देश नहीं चाहते कि शांति वार्ता की मेज पर एक साथ बैठ कर विमर्श करें।

राष्ट्रपति पुतिन इस संकेत से अनजान नहीं हैं। शायद इसीलिए उन्होंने पिछले महीने स्विटजरलैंड में आयोजित यूक्रेन शांति सम्मेलन में शामिल होने से इंकार कर दिया। पश्चिमी देश पुतिन को आक्रमणकारी और रक्तपिपासू ठहराते हैं लेकिन यह सच नहीं है। वस्तुतः यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाने की घोषणा के कारण पुतिन को अपने पड़ोसी पर हमला करने के लिए मजबूर होना पड़ा। सही मायने में नाटो का विस्तार रूस की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। चीन का भी ऐसा ही मानना है।

प्रधानमंत्री मोदी ने ऑस्ट्रिया के चांसलर को 19वीं सदी की उस ऐतिहासिक वियना कांग्रेस की याद दिलाई जिसने यूरोप में शांति और स्थिरता कायम करने में महती भूमिका निभाई थी। चांसलर नेहमर को विश्वास है कि भारत रूस-यूक्रेन शांति प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। लेकिन हकीकत यह है कि इस शांति प्रक्रिया में नाटो को आगे आना होगा वरना पूरी दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की चपेट में आ सकती है।