अमेरिका यात्रा पर पहुंचे राहुल गांधी ने प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए कुछ ऐसे बयान दिए, जिन पर विवाद होना स्वाभाविक था। भाजपा नेताओं ने उनके बयानों पर आपत्ति जताई और उन पर विदेश में देश को बदनाम करने का आरोप लगाया। यह कोई नई बात नहीं है कि राहुल गांधी पर इन आलोचनाओं का असर नहीं पड़ता। उन्होंने भारत में राजनीति में प्यार, सम्मान और आदर की कमी पर चिंता व्यक्त की, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है कि वह खुद अपने राजनीतिक विरोधियों, विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति किस तरह की नफरत दिखाते हैं और इसका कोई मौका नहीं छोड़ते।

राहुल गांधी ने इस बार भी विदेश में अपने बयानों से विरोधियों पर हमला किया। उन्होंने कई ऐसे बयान दिए, जो उनकी राजनीतिक संकीर्णता को उजागर करते हैं। राहुल गांधी ने फिर से भारत को अमेरिका की तरह राज्यों का संघ बताया और यह आरोप लगाया कि भारत में विविधता का निरादर हो रहा है। इससे भी गंभीर बात यह रही कि उन्होंने दावा किया कि भारत में तमिल, तेलुगु, मलयालम आदि भाषाओं पर हिंदी थोपी जा रही है और उनकी संस्कृति, खान-पान को कमतर दिखाया जा रहा है। यह आरोप बेबुनियाद और शरारतपूर्ण है, क्योंकि भारत में हिंदी और अन्य भाषाओं के बीच कोई संघर्ष नहीं है। गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी की लोकप्रियता स्वतः ही बढ़ रही है, क्योंकि वहां हिंदी सीखने की जरूरत महसूस की जा रही है।

राहुल गांधी के बयानों से यह स्पष्ट होता है कि उन्हें भारत में कुछ भी सकारात्मक नजर नहीं आता। उनके अनुसार, भारत में सभी संस्थाओं और न्यायिक तंत्र पर भाजपा और आरएसएस का कब्जा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा और आरएसएस महिलाओं को दबाने में लगे हुए हैं और हुनरमंद लोगों को किनारे किया जा रहा है। यह स्पष्ट है कि भाजपा, आरएसएस और मोदी सरकार राहुल गांधी को पसंद नहीं हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह विदेश में देश की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करें।

राहुल गांधी पहले भी कह चुके हैं कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो गया है और अब वह यह भी दावा कर रहे हैं कि संविधान खतरे में है।