प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 8 और 9 जुलाई को रूस यात्रा ने दोनों देशों के बीच संबंधों को और प्रगाढ़ बना दिया है। यह यात्रा करीब पांच वर्षों के अंतराल के बाद हुई, जिससे वैश्विक राजनीति में यह संदेश गया कि अब दुनिया बहुध्रुवीय समीकरणों से संचालित होगी।
भारत-रूस के बीच अंतिम वार्षिक शिखर वार्ता नई दिल्ली में 6 दिसंबर 2021 को हुई थी, जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन भारत दौरे पर थे। कोविड महामारी और यूक्रेन युद्ध के बाद यह मोदी की पहली रूस यात्रा थी। 9 जुलाई को रूस में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि रूस का नाम सुनते ही हर भारतीय के मन में सबसे पहले सुख-दुख का साथी आता है। यह सत्य है कि आजादी के बाद से रूस हर कदम पर भारत के साथ खड़ा रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी की रूस यात्रा ऐसे समय पर हुई, जब अमेरिका में रूस-यूक्रेन संघर्ष पर नाटो की बैठक हो रही थी। इस यात्रा के दौरान मोदी ने विश्व शांति की हिमायत करते हुए राष्ट्रपति पुतिन से कहा कि युद्ध के मैदानों से शांति का रास्ता नहीं निकलता है।
मोदी की इस यात्रा से पहले अमेरिकी विदेश विभाग ने बयान दिया था कि अमेरिका को उम्मीद है कि भारत रूस के साथ बातचीत में मॉस्को से संयुक्त राष्ट्र चार्टर और यूक्रेन की संप्रभुता का सम्मान करने की बात करेगा। यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदीमीर जेलेंस्की ने इस बैठक की निंदा करते हुए इसे शांति प्रयासों के लिए विनाशकारी बताया।
भारत ने अपनी विदेश नीति के तहत किसी के दबाव या गुटबाजी में न आने का सिद्धांत अपनाया है। अपनी यात्रा में मोदी ने यूक्रेन को लेकर पुतिन को नसीहत दी, जबकि पुतिन ने संघर्ष के समाधान की कोशिशों के लिए भारत का आभार जताया। भारत ने कजान और इकेतेरिनबुर्ग में कॉन्सुलेट खोलने का निर्णय लिया है। मोदी ने रूसी सेना में जबरन भर्ती किए भारतीयों का मुद्दा भी उठाया, जिस पर पुतिन ने आश्वासन दिया कि वे सभी भारतीयों को बहाल करेंगे।
इस यात्रा को भारत की कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा सकता है। अमेरिका और उसके समर्थक देशों को यह समझना चाहिए कि भारत उनके दबाव में नहीं चलेगा। वैश्विक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं, जैसा कि फ्रांस में वामपंथी धड़े न्यू पॉपुलर फ्रंट ने फिलीस्तीन को मान्यता देने की घोषणा कर दी है। जनता अब अमन चाहती है, जो सबके विकास के लिए जरूरी है।