मंगलवार, 30 जुलाई का दिन देश के लिए दो अमंगल खबरें लेकर आया। केरल के वायनाड जिले में सोमवार देर रात से शुरू हुई बारिश के कारण भूस्खलन हुआ, जिसमें मेप्पडी, मुंडक्कई टाउन और चूरलमाला में बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हुए हैं। कम से कम 36 लोगों की मौत की खबर है और सौ से अधिक लोगों के दबे होने की आशंका है। फिलहाल राहत और बचाव कार्य जारी है, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने केंद्र से हरसंभव मदद का ऐलान भी किया है। श्री मोदी ने भूस्खलन में मारे गए प्रत्येक व्यक्ति के परिजनों को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से दो लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है। वहीं, वायनाड से जीत दर्ज करने वाले राहुल गांधी ने भी इस हादसे पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए हरसंभव मदद की बात की है। खबर है कि राहुल गांधी और वायनाड उपचुनाव में कांग्रेस की संभावित प्रत्याशी प्रियंका गांधी वायनाड जाकर पीड़ितों से मुलाकात कर सकते हैं।

वायनाड के इस प्राकृतिक हादसे के साथ ही एक और बड़े हादसे की खबर झारखंड से आई। यहां बड़ाबंबू में हावड़ा-मुंबई मेल के 20 डिब्बे एक मालगाड़ी से टकराकर पटरी से उतर गए, जिसमें दो लोगों की मौत की खबर है, साथ ही कई यात्री घायल बताए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि जहां यह रेल हादसा हुआ है, वहां पहले से एक मालगाड़ी पटरी से उतर गई थी, लेकिन उसके डिब्बे पटरी पर ही थे। इस बीच पीछे से आ रही हावड़ा-मुंबई मेल की मालगाड़ी के डिब्बों के साथ टक्कर हो गई और फिर निर्दोष लोगों की जान पर बन आई।

एक दिन पहले सोमवार को ही दरभंगा से नई दिल्ली जाने वाली बिहार संपर्क क्रांति दो हिस्सों में बंट गई थी, करीब 100 मीटर तक उसका इंजन आगे चला गया और सारे कोच पीछे रह गए थे, बाद में किसी तरह ट्रेन के बाकी बोगी और इंजन को कंट्रोल किया गया। गनीमत रही कि इस हादसे में जान-माल की कोई हानि नहीं हुई। अन्यथा अब रेल का सफर भी जान हथेली पर लेकर चलने वाला बन चुका है।

वायनाड में हुए भूस्खलन के लिए मुख्यतः भारी बारिश को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। हालांकि इसमें अधोसंरचना की कमजोरियों की पोल भी खुलती है। केरल में बारिश के मौसम में आने वाली यह पहली आपदा नहीं है। इस राज्य में हर बार बारिश के कारण बाढ़ के हालात बन जाते हैं, और पुलों, मकानों के ढहने से बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होते हैं। अगर मौसम की मार से बचने की तैयारी पहले ही कर ली जाए और दूरदृष्टि के साथ शहरी विकास नियोजन व प्रबंधन हो, तो ऐसी दुर्घटनाओं को काफी हद तक रोका जा सकता है।

यही बात रेल हादसों के लिए भी कही जा सकती है। झारखंड में हुई दुर्घटना पिछले कई हफ्तों से हो रहे रेल हादसों की एक और कड़ी ही कही जा सकती है, क्योंकि हमें अब भी नहीं पता कि इसके बाद रेल दुर्घटनाओं पर कोई रोक लगेगी या नहीं। सरकार की संवेदनहीनता का पता तो इसी बात से चल जाता है कि रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव इतनी रेल दुर्घटनाओं के बाद भी अपने पद पर बने हुए हैं। उनके कार्यकाल में पिछले साल जून में ओडिशा के बालासोर में तीन ट्रेनों की भीषण टक्कर का हादसा हुआ था, जिसमें 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और 1000 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

इस दुर्घटना के बाद श्री मोदी भी घटनास्थल पहुंचे थे, जहां उन्हें खंभे पर हाथ टिकाकर फोन पर बात करते हुए देखा गया था। इस तस्वीर के जरिए सरकार ने शायद यह दिखाने की कोशिश की थी कि उसे ऐसे हादसे का दुख है और आइंदा के लिए रोकना उसकी प्राथमिकता है। मगर यह शायद एक फोटोस्टंट ही था। क्योंकि इसके बाद कई और मौके आए, जब नरेन्द्र मोदी ऐसे ही चिंताग्रस्त फोन पर बात कर सकते थे। सुरंग का धंसना, बाढ़, कोचिंग सेंटर के तलघर में पानी भरने से हुए हादसे तो छोड़ ही दें, केवल रेल दुर्घटनाओं की बात करें तो 11 अक्टूबर 2023 को बिहार के बक्सर में दिल्ली से गुवाहाटी जा रही नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी, जिसमें 4 यात्रियों की मौत हो गई और 60-70 लोग घायल हो गए थे। 29 अक्टूबर 2023 को आंध्र प्रदेश के अलमांडा-कंथकपल्ली में दो पैसेंजर ट्रेनों की टक्कर में 14 यात्रियों की मौत हो गई और कई घायल हुए। पिछले महीने 17 जून को कंचनजंगा एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी, जिसमें 11 लोगों की मौत और 60 से अधिक घायल हुए थे।

इसी महीने 18 जुलाई को उत्तर प्रदेश के गोंडा रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन की आठ बोगियां पटरी से उतर गईं, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और 35 से ज्यादा घायल हुए। इस हादसे को लेकर अधिकारियों का कहना है कि चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ ट्रेन दुर्घटना ट्रैक में तोड़फोड़ के कारण हुई। यानी इससे पहले की रेल मंत्री और रेल मंत्रालय पर उंगलियां उठें, संभावित साजिश के तार छेड़ दिए जाएं, ताकि जवाबदेही से बचा जा सके। इस हादसे पर भी सोशल मीडिया के जरिए आशंका जताई जा रही है कि इतनी दुर्घटनाएं किसी साजिश के कारण हो रही हैं।

लेकिन इससे सरकार जवाब देने से बच नहीं सकती है। संसद के दोनों सदनों में रेल दुर्घटना को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं, और सरकार जितना इन सवालों से मुंह मोड़ेगी, जनता के सामने उसकी नाकामी उतनी ज्यादा खुलती जाएगी।