मानसून की दस्तक के साथ ही हिमाचल व उत्तराखंड में दरकते पहाड़ और रौद्र रूप दिखाती नदियां चिंता बढ़ाने वाली हैं। कुदरत के कहर के सामने इंसान बौना ही नजर आता है। तमाम मुख्य नदियां उफान पर हैं। जगह-जगह भूस्खलन से सड़कें ठप पड़ी हैं। हिमाचल में मूसलाधार बारिश के बीच मलबा व पत्थर गिरने से सैकड़ों सड़कें बंद हो गई हैं। सामान्य जनजीवन बुरी तरह प्रभावित है। पहले हम गर्मी से त्रस्त होकर बारिश की आस लगाए होते हैं, लेकिन जब बारिश आती है तो स्थितियां डराने वाली हो जाती हैं।
निस्संदेह ग्लोबल वार्मिंग संकट के चलते बारिश के पैटर्न में बड़ा बदलाव आया है। बारिश कम समय में ज्यादा मात्रा में बरसती है, जिससे न केवल पहाड़ों में कटाव बढ़ जाता है बल्कि पानी के साथ भारी मात्रा में मलबा गिरकर रास्तों व पानी के प्राकृतिक मार्गों को अवरुद्ध कर देता है। यह संकट इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि हमने पहाड़ों को विलासिता का केंद्र बना दिया है। तीर्थाटन अब पर्यटन जैसा हो गया है। पर्यटकों के वाहनों से छोटी सड़कें और पुल दबाव में हैं। नीति-नियंताओं ने पहाड़ों में सड़कों को फोर लेन-सिक्स लेन बनाने का जो उपक्रम किया है, उससे पहाड़ों का नैसर्गिक वातावरण खतरे में है।
पहाड़ों के किनारे काटने से भूस्खलन की गति तेज हुई है। गाहे-बगाहे पहाड़ों का मलबा सड़कों पर गिरकर यातायात को अवरुद्ध कर देता है। यात्रियों के जीवन पर हर समय संकट बना रहता है। हिमाचल की ही तरह से कुदरत के कोहराम से उत्तराखंड भी बुरी तरह त्रस्त है। भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी व पिंडर आदि नदियां खतरे के निशान के ऊपर बह रही हैं। चारधाम यात्रा मार्ग पर मलबा गिरने की घटनाएं बढ़ने से यात्रा कुछ समय के लिए स्थगित की गई है। बार-बार भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी किया जा रहा है।
जगह-जगह सड़कों के कटने से सैकड़ों यात्री फंसे हुए हैं। कई गांवों को जोड़ने वाली सड़कें बह गई हैं। बादल फटने की आशंका भी लगातार बनी रहती है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री जाने वाले मार्ग जगह-जगह बाधित हैं। भारी बारिश की आशंका को देखते हुए स्कूल व आंगनबाड़ी केंद्रों में छुट्टियां घोषित की गई हैं। सामान्य जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। कई मोटरमार्ग पूरी तरह अवरुद्ध हुए हैं। कई छोटे पुल बह गए हैं। कई निचले स्थानों से लोगों को हटाया गया है। कुल मिलाकर लाखों लोगों को अतिवृष्टि ने बंधक बना दिया है।
निश्चित रूप से तेज बारिश और उसके प्रभाव इंसानी नियंत्रण से बाहर होते हैं। लेकिन इसके बावजूद पहाड़ी इलाकों में विकास के मॉडल पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है। पहाड़ अध्यात्म के केंद्र भी रहे हैं, उन्हें पर्यटकों की विलासिता का केंद्र नहीं बनाया जाना चाहिए। हमें अपेक्षाकृत नए हिमालयी पहाड़ों और उसके परिस्थितिकीय तंत्र के प्रति संवेदनशील व्यवहार करना चाहिए। ज्यादा मानवीय हस्तक्षेप से ग्लेशियर पिघल रहे हैं और नदियों का बढ़ा जल संकट का कारण भी बन रहा है।