भाजपा के देशव्यापी सदस्यता अभियान का शुभारंभ यह दर्शाता है कि वह विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में अपनी स्थिति को और सुदृढ़ करना चाहती है। ऐसा करना उसके लिए आवश्यक है, क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में उसे वांछित सफलता नहीं मिली थी। स्पष्ट है कि उसे अपने सदस्यता अभियान को आगे बढ़ाते हुए उन कारणों पर भी विचार करना होगा, जिनके चलते लोकसभा चुनाव नतीजे आशा के अनुरूप नहीं रहे। इसी क्रम में उसे यह भी देखना होगा कि उसके नए-पुराने सदस्य पार्टी के प्रति वास्तव में निष्ठावान रहें।
उन्हें न केवल भाजपा की विचारधारा से लोगों को अवगत कराना होगा, बल्कि उसके प्रति कायल भी बनाना होगा। इसके साथ ही, उन्हें अपनी सरकारों की उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार भी करना होगा और यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सरकारी नीतियों पर सही तरह से अमल हो रहा है या नहीं। किसी भी दल के लिए उसके प्रतिबद्ध कार्यकर्ता एक बड़ी पूंजी होते हैं। उनका मनोबल बना रहे, यह देखना पार्टी नेतृत्व का दायित्व होता है।
एक आंकड़े के अनुसार, 2019 तक लगभग 18 करोड़ लोग भाजपा के सदस्य बन चुके थे। अब पार्टी 10 करोड़ से अधिक लोगों को सदस्य बनाने का इरादा रखती है। भाजपा अपने सदस्यता अभियान में मिस्ड कॉल का सहारा ले रही है। ऐसे तौर-तरीके अपनाने में हर्ज नहीं है, लेकिन यह देखना भी जरूरी है कि इस तरह से सदस्य बनने वाले उसकी रीति-नीति से सही तरह से परिचित हो पाते हैं या नहीं।
कोई राजनीतिक दल तभी आगे बढ़ते रहने में सक्षम हो पाता है, जब सभी क्षेत्रों और वर्गों के नए-नए लोग उससे जुड़ते रहते हैं। भारतीय राजनीति में नए लोगों और विशेष रूप से युवाओं के प्रवेश की आवश्यकता और भी अधिक महसूस की जाती है। इसी क्रम में स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि वह एक लाख ऐसे युवाओं को राजनीति में लाना चाहते हैं, जिनके परिवार का कोई सदस्य राजनीतिक रूप से सक्रिय न रहा हो।
यह एक अच्छी पहल है। इस पहल के सफल होने से राजनीति को परिवारवाद के चंगुल से मुक्त करने में भी मदद मिलेगी। राजनीति में नए लोगों के आने की अपेक्षा तभी पूरी हो सकती है, जब उन्हें यह दिखेगा कि उनके आगे बढ़ने के पर्याप्त अवसर हैं।