बंगाल विधानसभा द्वारा दुष्कर्मियों को फांसी की सजा का प्रावधान करने वाला विधेयक पारित किया गया है, लेकिन यह कहना कठिन है कि इससे यौन अपराधियों पर अंकुश लगेगा। विधेयक का उद्देश्य ममता सरकार की ओर से दुष्कर्म के अपराधों के प्रति संवेदनशीलता का संदेश देना प्रतीत होता है, विशेष रूप से कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक महिला डॉक्टर की दुष्कर्म के बाद हत्या के मामले को लेकर उठे सवालों के बाद।
विधेयक में प्रावधान है कि यदि दुष्कर्म की घटना के बाद पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह कोमा में चली जाती है, तो दोषी को फांसी की सजा दी जाएगी। हालांकि, प्रारंभिक चर्चा में यह कहा गया था कि दोषी को सजा सुनाने के 10 दिनों के भीतर फांसी दे दी जाएगी, पर पारित विधेयक में यह उल्लेख नहीं है, संभवतः न्याय प्रक्रिया के कारण।
देश में फांसी की सजा की न्यायिक प्रक्रिया लंबी होती है, जैसे कि निर्भया कांड के दोषियों को फांसी तक पहुंचने में आठ वर्ष लग गए थे। पिछले 20 वर्षों में दुष्कर्म और हत्या के मामलों में केवल पांच दोषियों को ही फांसी की सजा दी जा सकी है। इस प्रकार, कानूनों के कठोर होने के बावजूद, उनका प्रभाव सीमित हो सकता है जब तक न्यायिक प्रक्रिया और अपराधियों पर कार्रवाई में सुधार नहीं किया जाता।
ममता बनर्जी का दावा है कि यह विधेयक भारतीय न्याय संहिता से अधिक कठोर है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे ऐसा माहौल बनेगा जहां महिलाएं सुरक्षित महसूस कर सकेंगी, या क्या ऐसी घटनाएं रोकी जा सकेंगी?