डॉ. विजय शर्मा
न्यूयॉर्क निवासिनी डाइने ऐकरमैन की किताब ‘द जूकीपर्स वाइफ’ का मूल पोलिश शीर्षक ‘एजिल’ अर्थात असाइलम या सैंचुरी है। ऐकरमैन ने करीब दो दर्जन किताबें लिखी हैं, जिनमें काव्य संग्रह और कथेतर गद्य शामिल हैं। उनकी किताब ‘वन हंड्रेड नेम्स फॉर लव’ के लिए उन्हें पुलित्जर प्राइज की अंतिम सूची में भी शामिल किया गया था।
‘द जूकीपर्स वाइफ’ एक ऐतिहासिक जीवनी है, जो 1939 में पोलैंड के वार्सा में स्थित है। इसमें अंटोनिया जाबिन्स्की और उनके पति डॉक्टर जैन जाबिन्स्की की कहानी है, जो एक खुशहाल चिड़ियाघर चला रहे थे। लेकिन जब हिटलर की नाजी सेना ने उनके देश पर कब्जा कर लिया, तो चिड़ियाघर बंद कर दिया गया और इसके विशेष जीव-जन्तुओं को नाजियों द्वारा प्रयोग के लिए ले जाया गया। बाकी जानवरों को मार दिया गया और चिड़ियाघर को सूअर बाड़े में बदल दिया गया।
अंटोनिया और जैन जाबिन्स्की ने प्रतिकार दस्ते में काम करते हुए, बमबारी के बाद अपनी जान की बाजी लगाकर सैकड़ों यहूदियों को वार्सा घेटो से निकालकर अपने यहां सुरक्षित रखा। इन दोनों ने लगभग 300 यहूदियों की जान बचाई। नाजी अधिकारी डॉ. लुज हेक की नजर न केवल चिड़ियाघर पर, बल्कि अंटोनिया पर भी थी। लेकिन अंटोनिया अपने परिवार की सुरक्षा के लिए उसे सहन करती है, हालांकि यह उनके पति को नागवार गुजरता है।
डॉ. लुज हेक ने वार्सा में पशु प्रजनन के शोध के लिए एक स्थायी कार्यालय स्थापित किया। वह एक क्रूर व्यक्ति था, जो चिड़ियाघर के पक्षियों का शिकार करता और उनमें भूसा भरवाने का आदेश देता था।
वार्सा पूरी तरह से नाजी क्रूरता का शिकार हो गया था। लूटपाट, हत्या, और यहूदियों को जबरन उठाकर ले जाना आम घटनाएं बन गई थीं। यहूदियों के लिए पीला डेविड का स्टार बांह पर लगाना अनिवार्य था, और यहूदी अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं थे। जाबिन्स्की दंपति ने अपने कुछ मित्रों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें अपने घर में छुपाया, लेकिन उनकी दया-ममता यहीं नहीं रुकी।
जाबिन्स्की दंपति ने नाजियों के सामने सूअर पालन का प्रस्ताव रखा, जिससे वे अधिकृत सेना के भोजन की आपूर्ति कर सकें। इस योजना के तहत, वे घेटो से सूअर के खाने के लिए सामग्री इकट्ठा करने के बहाने यहूदियों को वहां से निकाल लाते थे।
इन यहूदियों को भेष बदलवाकर सीमा पार भेजा जाता था या उन्हें नागरिकता दिलवाई जाती थी। उनका घर और चिड़ियाघर अब दो तरह के जीवों का आश्रय बन गया था – सूअर, जो खुलकर घूम सकते थे, और मनुष्य, जिन्हें छिपकर रहना पड़ता था, क्योंकि कोई भी आवाज उनकी जान को खतरे में डाल सकती थी। अंटोनिया ने इसे ‘ह्यूमन जू’ की संज्ञा दी। दड़बों में छिपे हुए लोगों में नाजी बलात्कार की शिकार एक बच्ची उर्सुला भी थी।
यह मानव विडंबना थी कि एक ओर जाबिन्स्की दंपति अपनी जान की कीमत पर लोगों की जान बचाने में लगे थे, जबकि दूसरी ओर नाजियों द्वारा यहूदियों को मृत्यु शिविरों में भेजा जा रहा था।
अंततः नाजियों ने वार्सा को खाली करना शुरू कर दिया और रूसी फौजें आने लगीं। डॉ. हेक को चिड़ियाघर में यहूदियों के छिपे होने का पता चल गया, लेकिन अंटोनिया ने समय रहते उन सभी को वहां से निकाल दिया।
जब डॉ. हेक को कुछ नहीं मिला, तो उसने एंटोनिया के बेटे पर हमला किया और उसे बंदूक की नोंक पर रखा। एंटोनिया के याचना करने पर उसने बेटे को छोड़ दिया और वहां से चला गया। अंत में, एंटोनिया ने कैद में रखे एक सांड को मुक्त कर दिया, जो जंगल में भाग गया। नाजियों के समर्पण के बाद वार्सा का पुनर्निर्माण शुरू हुआ और अंटोनिया ने बचे हुए लोगों के साथ मिलकर फिर से चिड़ियाघर को बनाने में जुट गई। आज भी वार्सा का यह चिड़ियाघर पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।