देश के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की इस स्वीकारोक्ति ने हर संवेदनशील भारतीय के मन को छुआ कि अदालतों में लंबे समय से लंबित मामलों से तंग आकर लोग बस समझौता करना चाहते हैं। वैसे तो इस बात को सभी महसूस करते हैं लेकिन न्यायिक व्यवस्था के शीर्ष पर आसीन मुख्य न्यायाधीश की स्वीकारोक्ति के गहरे निहितार्थ हैं। उन्होंने कहा कि लोग अदालतों में मुकदमों के लंबे खिंचने से इतने त्रस्त हो जाते हैं कि किसी तरह समझौता करके पिंड छुड़ाना चाहते हैं। न्यायमूर्ति ने स्वीकारा कि एक जज के रूप में यह स्थिति हमारे लिए चिंता का विषय होनी चाहिए। उन्होंने माना कि इन स्थितियों में किसी तरह का समझौता समाज में पहले से व्याप्त असमानता को ही दर्शाता है। उन्होंने वादों के शीघ्र निपटान में लोक अदालतों की महत्वपूर्ण भूमिका को भी स्वीकार किया।

निस्संदेह, गाहे-बगाहे न्यायपालिका, कार्यपालिका व विधायिका द्वारा न्याय मिलने में होने वाली देरी को लेकर चिंता जरूर जताई जाती है, लेकिन इस जटिल समस्या के समाधान की दिशा में बदलावकारी प्रयास होते नजर नहीं आते। जिसके चलते तारीख पर तारीख का सिलसिला चलता ही रहता है। न्याय के इंतजार में कई-कई पीढ़ियां अदालतों के चक्कर काटती रह जाती हैं। देश में शीर्ष अदालत, उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में मुकदमों का अंबार निश्चित रूप से न्यायिक व्यवस्था के लिए असहज स्थिति है। बताया जाता है कि देश में तीनों स्तरों पर करीब पांच करोड़ मामले लंबित हैं। निश्चित ही यह न्यायिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर चुनौती है। जिसके बाबत देश के नीति-नियंताओं को गंभीरता से विचार करना चाहिए।

निस्संदेह, भारत दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। लेकिन इतनी बड़ी आबादी के अनुपात में पर्याप्त न्यायाधीशों व न्यायालयों की उपलब्धता नहीं है। निश्चित रूप से न्याय का मतलब न्याय मिलने जैसा होना चाहिए। न्याय समाज में महसूस भी होना चाहिए। देश में न्याय की प्रक्रिया सहज व सरल तथा आम आदमी की पहुंच वाली होनी चाहिए। राज्यों की क्षेत्रीय भाषाओं में न्यायिक प्रक्रिया की मांग लंबे समय से की जाती रही है। इस दिशा में कुछ प्रयास हुए भी हैं लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। जिससे तारीख पर तारीख का सिलसिला थम सके। जिसके लिए जरूरी है कि अदालती मामलों का तय समय सीमा में निपटारा किया जाना सुनिश्चित हो। उम्मीद की जा रही है कि हाल ही में लागू हुए तीन नए आपराधिक कानूनों के लागू होने के बाद स्थिति में सुधार हो सकेगा। केंद्र सरकार भी कहती रही है कि नए कानूनों का मकसद लोगों को सजा देने के बजाय न्याय दिलाने पर केंद्रित है।