हुमायूं चौधरी

मध्य-पूर्व में एक बड़े युद्ध की आहट सुनाई दे रही है। इजरायल के खिलाफ ईरान ने हमले की न केवल चेतावनी दी है बल्कि खुद इजरायल भी इससे बचाव की तैयारियां कर रहा है। माना जा रहा है कि 12-13 अगस्त तक यह आक्रमण हो सकता है और जैसा कि कहा जा रहा है, यह भीषण होगा। इस लड़ाई के लिए दोनों पक्षों की हो रही लामबंदी से भी इसकी कल्पना की जा सकती है। अगर इसे समय रहते न रोका गया तो बड़ी तबाही की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माईल हानिया और हिजबुल्लाह के टॉप कमांडर फाउद शुकर की हत्या से इजरायल के विरुद्ध और ईरान का साथ देने के लिए लेबनान, यमन, सीरिया और जॉर्डन आ गए हैं। ईरान ने सीरिया से इजरायल पर ड्रोन हमले की तैयारी की है। जॉर्डन तथा लेबनान के कई आतंकी संगठन भी इस लड़ाई में ईरान का साथ देने के लिए मोर्चाबंदी कर रहे हैं।

शुक्रवार को जब हानिया को कतर की राजधानी दोहा में दफनाया गया तो कतर तथा फिलिस्तीनी संगठनों के कई बड़े नेता और कमांडर उपस्थित थे जिन्होंने इस लड़ाई को आगे बढ़ाने का मंसूबा जाहिर किया। फिलीस्तीन समर्थक इस्लामिक देशों की एकजुटता को देखकर इजरायल ने भी अपनी तैयारियां पूरी कर ली हैं। उसने अपने नागरिकों को बचाव संबंधी सभी उपाय करने हेतु आगाह किया है। नागरिकों से कहा गया है कि वे अपने बम शेल्टरों को साफ रखें ताकि हमला होने की स्थिति में डेढ़ मिनटों में वे उनमें पहुंचकर खुद को सुरक्षित कर लें। उनसे पानी, खाद्य सामग्री, आवश्यक दवाओं का स्टॉक रखने को कहा गया है। साथ ही उन्हें बैटरियों वाले टॉर्च खरीदकर रखने को भी कहा गया।

ईरान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अली बाघेरी ने कहा है कि पिछले 10 महीनों से इजरायल द्वारा गाजा पट्टी में जो नरसंहार किया गया है और विनाश फैलाया है उसके मद्देनजर उसे रोकना अब नितांत आवश्यक हो गया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर ऐसा न हुआ तो न सिर्फ पश्चिम एशिया बल्कि विश्व की शांति खतरे में पड़ जाएगी। फाउद शुकर की मौत से नाराज हिजबुल्लाह ने इजरायल पर कई मिसाइलें दागी थीं जिसे इजरायल ने हवा में ही नष्ट कर दिया था। इससे साफ है कि ईरान एवं समर्थक देशों में इजरायल के खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा है जिसे नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इस नाराजगी, लड़ाई की तैयारियों एवं दोनों पक्षों की लामबंदी को देखते हुए शांति के अंतरराष्ट्रीय प्रयास किए जाने अब बेहद जरूरी हो गए हैं। समय रहते ऐसा न किया गया तो लड़ाई छिड़ जाने पर उसे बड़े विनाश एवं नरसंहार के पहले रोकना कठिन हो जाएगा।

इजरायल की नाराजगी तुर्किये के प्रति भी देखने को मिली है जिसने हानिया की मौत पर अपना राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया था। यह उसका ईरान के प्रति समर्थन का तरीका माना गया है। हानिया की मौत के लिए इजरायल की सीक्रेट सर्विस मोसाद को जिम्मेदार माना जा रहा है जिसने प्रमुख लोगों की सुरक्षा के लिए तैनात ईरान की इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) के दो एजेंटों को इस काम के लिए कथित तौर पर सुपारी दी थी। इस हत्या के कारण ईरान के राष्ट्रपति मसूद पजिश्कियन की मुश्किलें बढ़ गई हैं। उन्हें अपने ही देशवासियों के सामने शर्मिंदगी हो रही है। हालांकि हानिया की मौत के लिए जिम्मेदार मानते हुए पजिश्कियन ने दो दर्जन से ज्यादा आईआरजीसी तथा सीक्रेट सर्विस के अधिकारियों को गिरफ्तार कराया है। हानिया की हत्या जिस गेस्ट हाउस में हुई थी, उसके कई अधिकारियों की भी गिरफ्तारी कर पजिश्कियन बतलाना चाह रहे हैं कि हानिया की हत्या को उन्होंने गंभीरता से लिया है। इस लिहाज से भी उनके लिए जरूरी है कि वह इजरायल पर बड़ा आक्रमण करें क्योंकि ईरान व उसकी जनता मान कर चल रही है कि फाउद व हानिया की हत्याओं के पीछे इजरायल का ही हाथ है। वैसे खुद इजरायल फाउद की हत्या की जिम्मेदारी तो लेता है लेकिन हानिया की मौत की जिम्मेदारी को लेकर न वह इंकार करता है और न ही उसने स्वीकारा है।

हालांकि ईरान यदि यह आक्रमण करता है तो पजिश्कियन की समस्या ऐसे बढ़ेगी कि उन्होंने यह चुनाव इसी वादे पर जीता था कि वे पश्चिमी देशों के साथ ईरान के संबंध सुधारेंगे। साफ है कि इजरायल पर आक्रमण की घोषणा से वे ऐसा करने में नाकाम साबित हो गए हैं क्योंकि पश्चिमी देश इजरायल के साथ हैं। साफ है कि पहले की ही तरह अमेरिका, फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया आदि इजरायल का साथ देंगे। हालांकि अमेरिका की भूमिका पर अलग-अलग तरह की बातें की जा रही हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मेरीलैंड एयरबेस पर पत्रकारों को जानकारी दी कि “उन्होंने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से फोन पर कहा है कि उनके पास युद्ध विराम का मौका है और इस दिशा में उन्हें आगे बढ़ना चाहिए।” दूसरी तरफ यह भी कहा जाता है कि अमेरिका के सैन्य मुख्यालय में इस संभावित युद्ध को लेकर विचार चल रहा है। इस आशय की खबरों की पुष्टि नहीं हुई है कि अमेरिका इन दोनों देशों की लड़ाई होने पर इजरायल की मदद के लिए अपनी सेना भेजेगा। उसके समुद्री बेड़े भी भेजे जाने की बात चली थी। यह अवसर तकरीबन एक वर्ष पहले भी आया था लेकिन अमेरिकी प्रशासन इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि उसे अपने सैनिक उतारने की जरूरत नहीं है। वह अब क्या कदम उठाता है, यह देखना होगा। विश्व शांति के लिए इस लड़ाई को टाला जाना चाहिए।