लेखक: हुसैन आब्दी

पृष्ठभूमि

उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश के तहत कांवड़ यात्रा के मार्ग में आने वाली दुकानों, ठेलों आदि पर मालिक और कर्मचारियों के नाम लिखे जाने का निर्देश दिया गया था। इस आदेश को लेकर व्यापक विरोध हुआ और इसे सामाजिक ध्रुवीकरण के प्रयास के रूप में देखा गया। विपक्षी दलों और समाज के विभिन्न वर्गों ने इस आदेश की निंदा की।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर अंतरिम रोक लगाते हुए कहा कि होटल और रेस्तरां मालिक यह बता सकते हैं कि वे किस प्रकार का खाना परोस रहे हैं, लेकिन उन्हें अपना और कर्मचारियों का नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। अदालत ने माना कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल किया है। इसी प्रकार के आदेश मध्य प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारों ने भी जारी किए थे, जिन पर भी रोक लगा दी गई है।

याचिकाकर्ताओं की दलीलें

एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया कि यह आदेश स्वैच्छिक बताया गया, लेकिन इसका पालन अनिवार्य कर दिया गया। दुकानदारों पर इसके लिए दबाव डाला जा रहा है। सिंघवी का तर्क था कि बहुत से शाकाहारी रेस्तरां हिन्दुओं द्वारा चलाए जाते हैं, लेकिन उनके कर्मचारी मुस्लिम या दलित हो सकते हैं। क्या कोई कह सकता है कि वह ऐसा खाना नहीं खाएगा जो मुस्लिमों या दलितों के द्वारा छुआ हुआ हो?

सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

इस आदेश से न केवल सामाजिक विभाजन हो सकता है, बल्कि रोजगार के संकट भी उत्पन्न हो सकते हैं। संप्रदाय या जाति के उजागर होने पर खाद्य सामग्रियों की बिक्री पर विपरीत असर हो सकता है। इसके अलावा, विशेषकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में संप्रदाय और जाति आधारित विभाजन के कारण मुस्लिम और निचली जातियों के दुकानदारों को कांवड़ियों के रोष का शिकार भी होना पड़ सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसवी भट्ट और ऋषिकेश राय की बेंच ने कहा कि खाद्य विभाग यह सुनिश्चित कर सकता है कि कांवड़ियों को ताजा और शुद्ध खाना मिले, लेकिन पुलिस को इसमें दखलंदाजी का अधिकार नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि इस आदेश से संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17 और 19(1)(ग) का उल्लंघन होता है, क्योंकि इससे धर्म, जाति और नस्ल के आधार पर भेदभाव और छुआछूत को बढ़ावा मिलता है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के इस हस्तक्षेप के बाद उम्मीद की जा सकती है कि ऐसे खुलेआम सांप्रदायिक विभाजन के खेल पर अंकुश लगेगा। हालांकि, भाजपा सरकारों के इन आदेशों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे हिंदू वोट बैंक को बनाए रखने के लिए कांवड़ यात्रा का इस्तेमाल कर रही थीं। अदालत के इस फैसले ने भाजपा शासित राज्यों की सरकारों के उन मंसूबों पर पानी फेर दिया है जो हिंदुओं के बीच अपनी जगह बनाए रखने के लिए कांवड़ यात्रा का उपयोग करना चाहती थीं।