कानपुर – कानपुर की शायरा शबीना अदीब इन दिनों चर्चा में हैं। कारण है कि मेरठ प्रशासन ने नौचंदी मुशायरे में उन्हें आने से रोक दिया। यह घटना उत्तर प्रदेश के कई नामी शायरों को असहज कर गई। शकील आजमी, हेमंत पांडेय और सालिम राजाजी जैसे शायरों ने इस कदम की निंदा की है।

शायरों की प्रतिक्रिया

आजमगढ़ के शायर शकील आजमी ने कहा, “कोई शायर नहीं चाहता कि उसके लिखे शब्द से समाज में कोई गलत संदेश जाए। शायर तो पूरे जहां का दर्द सीने में रखता है।” कानपुर के हास्य कवि हेमंत पांडेय ने कहा, “अगर सत्ता के खिलाफ कविता पढ़ी है, तो पढ़ना चाहिए। मैं खुद अपनी कविताओं में कभी भाजपा नेताओं की टांग खींचता हूं, कभी तारीफ भी करता हूं।” बनारस के शायर सालिम राजाजी ने कहा, “अब मुल्क में वह सरकार है, जो अपने खिलाफ कोई बात सुनना नहीं चाहती। यह तानाशाही का दौर है।”

नज्म वायरल होने के बाद शबीना को रोका गया

मेरठ में 20 जुलाई को पटेल मंडप में “ऑल इंडिया मुशायरा” होना था। मुशायरे में शबीना अदीब को बुलाया गया था, लेकिन उनकी 20 साल पुरानी नज्म “लहू रोता है हिंदुस्तान…” का वीडियो वायरल हो गया। भाजपा समर्थकों ने उनकी नज्म पर विरोध जताया। इसके बाद अपर नगर आयुक्त ने शबीना अदीब को फोन करके कार्यक्रम में आने से मना कर दिया। नज्म को भाजपा सरकार के खिलाफ बताया गया।

प्रतिक्रिया के सवाल-जवाब

सवाल: मेरठ के मुशायरे में शायरा शबीना को बुलाने के बाद मना किया गया, इसे कैसे देखते हैं?

जवाब: यह दुखद है। शबीना अदीब कानपुर का गौरव हैं और उनका रोका जाना दुखद है। 20 साल पहले पढ़ी गई नज्म को लेकर विरोध करना गलत है। प्रजातंत्र में साहित्यकारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।

सवाल: समय कोई भी रहा हो, साहित्यकारों की कलम सत्ता के खिलाफ चली है, तो क्या यह भी बड़ा कारण माना जा रहा है?

जवाब: राजनीति से प्रेरित होना स्वाभाविक है। मंच पर कवि केवल कवि होते हैं, और उनकी व्यक्तिगत राय मंच पर नहीं आती। राजनीति को मंच पर लाने से कवि सम्मेलन का महत्व कम हो जाएगा।

सवाल: सत्ता के खिलाफ कवियों का एक वर्ग लिखता-पढ़ता है, कैसे देखते हैं?

जवाब: कवि समाज का सबसे संवेदनशील व्यक्ति होता है। उनकी लेखनी में मानवता होनी चाहिए, न कि धार्मिक या राजनीतिक भेदभाव।

सवाल: क्या आपको लगता है कि भाजपा के समय में बोलने की आजादी कम हो गई है?

जवाब: ऐसा नहीं है। भाजपा सरकार में भी कवि सम्मेलन होते हैं, जहां अधिकारी और सांसद बैठते हैं और कवियों की खिंचाई पर ताली बजाते हैं।

सवाल: हाल में सरकार ने कांवड़ रूट की दुकानों पर पहचान लिखने का आदेश दिया, इसे कैसे देखते हैं?

जवाब: हर सरकार की अपनी सोच होती है। इस निर्णय को भी विचार-विमर्श के बाद लिया गया होगा।

निष्कर्ष

शायर शकील आजमी और सालिम राजाजी जैसे कवियों का मानना है कि शायर समाज का दर्द अपने सीने में रखता है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखना जरूरी है। शायरा शबीना अदीब का मुशायरे में शामिल होने से रोकना अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। लेखक और कवि समाज और सरकार को आइना दिखाते हैं, और उन्हें अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।