यह तथ्य किसी से छिपा नहीं कि भारत धीरे-धीरे मधुमेह, हृदय रोग और मोटापे की राजधानी बनता जा रहा है। देश के हर चार में से एक व्यक्ति मोटापे और प्री-डायबिटिक स्थिति में पहुंच गया है। संकट इसलिए बड़ा है कि किशोर और युवा भी इसके चपेट में आ रहे हैं। रात दिन मोबाइल-लैपटॉप में लगे रहने और शारीरिक श्रम से दूर पीढ़ी के लिए फास्ट फूड खासा घातक साबित हो रहा है। यही वजह है कि कई सर्वेक्षणों के निष्कर्ष और विशेषज्ञों की सिफारिश के बाद देश के विश्वविद्यालयों का नियमन करने वाली राष्ट्रीय संस्था विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने कॉलेजों को निर्देश दिए हैं कि कॉलेज की कैंटीन में पिज्जा, बर्गर और समोसे जैसे जंक फूड की बिक्री पर रोक लगाई जाए।

दरअसल, छात्रों में बढ़ते मोटापे और मोटापे से जनित अन्य रोगों की समस्या के मद्देनजर यूजीसी ने कहा है कि शैक्षणिक संस्थानों में स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक खाद्य पदार्थों की बिक्री पर तुरंत रोक लगाई जाए। निस्संदेह, नई पीढ़ी में जंक फूड को लेकर खासा क्रेज है, लेकिन युवाओं के स्वास्थ्य को लेकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। हाल के दिनों में युवाओं में मधुमेह, मोटापे और हृदय संबंधी विकार के मामले तेजी से बढ़े हैं।

कुछ माह पूर्व आई आईसीएमआर की रिपोर्ट में भी चिंता जताई गई थी कि देश में तेजी से बढ़ रहे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों में वसा की अधिक मात्रा पायी जाती है, जो मोटापा बढ़ने का बड़ा कारण है। यह कालांतर में हृदयाघात, डायबिटीज आदि गैर संक्रामक बीमारियों की वजह बनता है। आईसीएमआर ने अच्छे स्वास्थ्य को मानव के मौलिक विशेषाधिकार की संज्ञा दी है। दूसरी ओर मानव पोषण, महामारी विज्ञान, चिकित्सा शिक्षा, बाल रोग और सामुदायिक उपचार आदि के स्वतंत्र विशेषज्ञों के राष्ट्रीय थिंक टैंक एनएपीआई ने भी इसी प्रकार की चिंताएं जताई हैं। एनएपीआई ने भी शैक्षणिक संस्थानों में अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों पर तुरंत रोक लगाने की सलाह दी है, साथ ही कैंटीन में स्वस्थ खाद्य पदार्थों के विकल्प बढ़ाने पर जोर दिया है।

बहरहाल, अब शिक्षण संस्थाओं के प्रबंधकों और शिक्षकों का दायित्व है कि कॉलेजों की कैंटीनों में स्वस्थ खाद्य पदार्थों के विकल्प उपलब्ध कराएं। साथ ही छात्रों को इस दिशा में आगे बढ़ने को प्रेरित करें। निस्संदेह, केवल यूजीसी के निर्देशों से हालात बदलने वाले नहीं हैं। दरअसल, यूजीसी ने इस बाबत पहली बार दिशा-निर्देश नहीं दिए हैं। इससे पहले दस नवंबर 2016 तथा इक्कीस अगस्त 2018 को भी इसी तरह के परामर्श जारी किए गए थे। विडंबना यह है कि युवा पीढ़ी पाश्चात्य खानपान शैली का अंधानुकरण कर रही है