ट्रम्प पर हमला: राजनीति को हिंसा-घृणा से मुक्त करने की जरूरत

डॉ. दीपक पाचपोर

अमेरिका के राष्ट्रपति को अमूमन दुनिया का सबसे ताकतवर इंसान माना जाता है। इसका कारण है खुद उस देश का सबसे शक्तिशाली होना- मूल रूप से ज्ञान, सूचना, व्यवसाय और सबसे बड़ी बात अपनी सामरिक ताकत के कारण। परमाणु शक्तियों और अत्यंत आधुनिक सेना के चलते वह दूसरे विश्व युद्ध के बाद से ही एक तरह से दुनिया का अगुवा राष्ट्र माना जाता है। अपने भीतर एक मजबूत लोकतांत्रिक प्रणाली में जीने वाले इस मुल्क के राष्ट्रपति के पास इतनी ताकत होती है कि वह अपने देश के साथ-साथ दुनिया भर का नेता मान लिया जाता है।

संसदीय प्रणाली की बजाय राष्ट्रपति प्रणाली वाले अमेरिका का यह शीर्ष व्यक्ति इस व्यवस्था के चलते बड़ी शक्तियां अपने पास रखता है। इसके साथ ही उसके अंतरराष्ट्रीय दबदबे के कारण उसे अतिरिक्त ताकत मिल जाती है। उसकी खुद की चयनित होने की प्रणाली ऐसी दुरुह होती है कि वास्तविक रूप से पूरे देश में वोट बटोरकर ही कोई इस पद तक पहुंच सकता है। देश के पास अमेरिकी राष्ट्रपति को सुरक्षित रखने के लिए बहुत प्रोफेशनल सुरक्षाकर्मियों का बड़ा दस्ता होता है।

अमेरिका में पहले जब दो राष्ट्रपति मारे गए थे, तब राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां ऐसी नहीं थीं लेकिन दुनिया में वर्तमान में जो हालात हैं, उसके कारण छोटे से छोटे और महत्वहीन देश तक अपने राष्ट्राध्यक्षों से लेकर तमाम छोटे-बड़े नेताओं को कड़ी सुरक्षा देते हैं। यह अलग बात है कि इसके बावजूद कई राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राजनीतिज्ञ मारे जाते हैं। अमेरिका की ही बात करें तो दास प्रथा का उन्मूलन करने वाले अब्राहम लिंकन की 1865 में एवं जॉन एफ. कैनेडी की 1968 में हत्या हुई थी। 1972 में राष्ट्रपति पद के एक उम्मीदवार जॉर्ज सी. वैलेस पर गोलियां चली थीं जिससे घायल होकर वे आजीवन व्हील चेयर पर रहे।

अब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर गोली दागी गई है। वैसे तो वे इस वक्त राष्ट्रपति नहीं हैं लेकिन अभी के राष्ट्रपति जो बाइडेन के पहले वे ही विश्व के इस सर्वाधिक ताकतवर पद को संभाल रहे थे। सम्भावना है कि अगली मर्तबा फिर से वे ही अपनी पार्टी के प्रत्याशी होंगे। इसका दावा उन्होंने पेश कर दिया है और इस रेस में वे आगे हैं। एफबीआई एवं अन्य जांच एजेंसियां देख रही हैं कि उनकी हत्या की साजिश का कारण क्या हो सकता है- कोई अंदरूनी मसला अथवा कोई अंतरराष्ट्रीय साजिश।

जो भी हो, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा लेकिन जिस प्रकार से ट्रम्प को निशाना बनाया गया है उससे एक बार फिर से राजनीति को हिंसा से मुक्त बनाने की जरूरत महसूस होने लगी है। यदि अमेरिका जैसे देश का अभी ही रिटायर हुआ राष्ट्रपति, जिसे लगभग वैसी ही सुरक्षा मिली हुई है जैसी कि उसे पद पर बने रहने के दौरान मिलती थी, एक 20 वर्षीय युवा के हाथों मरने से बाल-बाल बच जाता है, तो उसके कारण ढूंढने से अधिक जरूरी है कि हिंसा से मुक्त दुनिया बनाने के सम्मिलित प्रयास किए जाएं।

ट्रम्प की घृणा और हिंसा की राजनीति

ट्रम्प उन राष्ट्रपतियों में से एक रहे हैं जिन्हें अपने विरोधियों और कुछ वर्गों के प्रति उनकी घृणा के लिए जाना जाता है। वे चार साल ही राष्ट्रपति रहे परंतु उतने अल्प समय में उन्होंने अनेक समूहों के प्रति अपनी नफरत और हिंसा का भाव प्रदर्शित किया। पड़ोसी देश मैक्सिको से बड़ी संख्या में आने वाले लोगों के बारे में उन्होंने खराब शब्दों का इस्तेमाल किया था। यहां तक कि वे चाहते थे कि अमेरिका और मैक्सिको के बीच वे दीवार खड़ी कर दी जाए और उसका खर्च मैक्सिको से वसूला जाए।

अप्रवासियों के प्रति उनकी राय हमेशा नफरत वाली रही है। इसकी शुरुआत उन्होंने 2015 में पद की अपनी दावेदारी का ऐलान करने के साथ ही कर दी थी। बाद में तो उनकी यह घृणा सभी तरह के अप्रवासी और यहां तक कि सभी बाहरी लोगों के लिए विस्तार पाती गई। ऐसे ही नस्लीय भेदभाव बरतने वालों और हिंसा में शामिल लोगों को वे प्रोत्साहन देते थे। ट्रम्प के खिलाफ अमेरिकी सीक्रेट सर्विस के पास अनेक रिपोर्ट आईं कि हिंसा करने वाले कई लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं।

साल 2016 में एक श्वेत व्यक्ति अपने अश्वेत पड़ोसियों को चाकू से डराता हुआ पकड़ा गया। उसने अधिकारियों को धमकाया कि “ट्रम्प उन्हें ठीक कर देंगे।” ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं को 16 निष्क्रिय बम भेजने वाले सीजर सीयोक नामक व्यक्ति ने ट्रम्प को अपना “सरोगेट पिता” बतलाया। 2019 में टेक्सास के एल पासो में हुई सामूहिक गोलीबारी में 23 लोग मारे गए थे। उन शूटरों ने अप्रवासियों को लेकर ट्रम्प के बयान को दोहराया।

अमेरिका में जब “ब्लैक लाइव्स मैटर” आंदोलन चल रहा था तब जिस किशोर ने उसमें शामिल तीन लोगों की हत्या कर दी थी, ट्रम्प ने उसका बचाव किया था। 2020 में हुई पहली राष्ट्रपति बहस में ट्रम्प ने श्वेत वर्चस्ववादियों की आलोचना करने से मना कर दिया था। अगस्त 2015 में बोस्टन में दो भाइयों ने एक बेघर व्यक्ति पर पेशाब कर दी। जब उन्हें पकड़ा गया तो उन्होंने ट्रम्प को उद्धृत करते हुए कहा कि वे सही हैं और सभी अप्रवासी लोगों को निर्वासित करना चाहिए। हालांकि बाद में पता चला कि वह व्यक्ति मैक्सिकन तो था लेकिन अमेरिका का ही नागरिक था, न कि अवैध रूप से रहने वाला कोई अप्रवासी।

हिंसा से ट्रम्प को कोई बहुत परहेज नहीं रहा है। 2015 में मियामी में उनकी एक प्रचार सभा में जब उन्हें प्रदर्शनकारी बार-बार टोक रहे थे तो उन्होंने चेताया कि अगली बार जब वे उनसे बात करेंगे तो थोड़ा अधिक हिंसक होकर करेंगे। इसी साल उनकी एक प्रचार सभा में ट्रम्प ने भीड़ में उनका विरोध कर रहे एक अश्वेत को उठाकर फेंकने का आह्वान तो किया ही, जब उनके समर्थक उसे घूंसे व लातों से पीट रहे थे तो उनका समर्थन किया। बाद में उन्होंने इस कृत्य को जायज ठहराया था।

हिंसा और घृणा का अंत

हिंसा से मुक्त दुनिया बनाने के सम्मिलित प्रयास किए जाने की जरूरत है। ट्रम्प पर हाल ही में हुए हमले से यह स्पष्ट हो गया है कि राजनीति में हिंसा और घृणा की प्रवृत्ति को समाप्त करना अत्यंत आवश्यक है। यह काम राजनीतिज्ञों का है। सिर्फ इसलिए नहीं कि नेता भी उसकी जद में आ सकते हैं, बल्कि इसलिए कि सियासत की फैलाई नफरत और हिंसा की बलि तो ज्यादातर वे मासूम चढ़ते हैं जो पर्याप्त सोच के अभाव में ऐसे नेताओं से प्रेरणा लेते हैं जिनके पास हिंसा फैलाने के क्षुद्र मकसद हैं।

अमेरिका की ही बात करें तो दास प्रथा का उन्मूलन करने वाले अब्राहम लिंकन की 1865 में एवं जॉन एफ. कैनेडी की 1968 में हत्या हुई थी। 1972 में राष्ट्रपति पद के एक उम्मीदवार जॉर्ज सी. वैलेस पर गोलियां चली थीं जिससे घायल होकर वे आजीवन व्हील चेयर पर रहे। अब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर गोली दागी गई है। वैसे तो वे इस वक्त राष्ट्रपति नहीं हैं लेकिन अभी के राष्ट्रपति जो बाइडेन के पहले वे ही विश्व के इस सर्वाधिक ताकतवर पद को सम्हाल रहे थे। सम्भावना है कि अगली मर्तबा फिर से वे ही अपनी पार्टी के प्रत्याशी होंगे। इसका दावा उन्होंने पेश कर दिया है और इस रेस में वे आगे हैं।