नवीन त्रिपाठी
लोकसभा चुनाव में अपने बूते 370 सीटें जीतने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 240 सीटों पर सिमटने के बाद अपनी सरकार तो बना ली और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद पर पुनः स्थापित कर दिया, लेकिन यह तेलुगु देशम पार्टी और जनता दल यूनाइटेड के समर्थन से ही संभव हो सका। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के अंदर इस कमजोरी के खिलाफ असंतोष फूट सकता है। महाराष्ट्र में यह नाराजगी जल्दी ही देखने को मिल सकती है, क्योंकि वहां तीन महीनों में चुनाव होने जा रहे हैं।
महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि भाजपा द्वारा उद्धव ठाकरे की अविभाजित शिवसेना, शरद पवार की अविभाजित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस की गठबंधन सरकार को गिराना लोगों को पसंद नहीं आया। भाजपा ने शिवसेना और एनसीपी को तोड़कर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सरकार बनाई थी, और केंद्र के इशारे पर चुनाव आयोग ने उनके चुनाव चिन्ह भी छीन लिए थे। इसका खामियाजा भाजपा को लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ा। कांग्रेस सबसे ज्यादा सीटें पाकर पहले क्रमांक का दल बन गई, और शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट को भी अच्छी सफलता मिली।
राहुल गांधी की यात्राओं, विशेषकर ‘न्याय यात्रा’, ने महाराष्ट्र के लोगों पर अच्छा प्रभाव डाला था। समापन समारोह में तीनों सहयोगी दलों की संयुक्त रैली ने संकेत दे दिया था कि हवा का रुख बदल रहा है। चुनाव परिणामों ने साबित कर दिया कि जनता एकनाथ शिंदे की नहीं, बल्कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना को असली मानती है। इसी तरह, अजित पवार की एनसीपी के बजाय शरद पवार की एनसीपी में लोगों का भरोसा है।
चुनाव नजदीक और चुनौतियाँ
महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले कई घटनाक्रम हो रहे हैं, जिससे भाजपा और उसके सहयोगी दलों की चिंता बढ़ गई है। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने उद्धव ठाकरे के निवास पर जाकर उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनने का समर्थन दिया है। शंकराचार्य ने कहा कि उद्धव ठाकरे के साथ छल हुआ है और केदारनाथ धाम के नाम पर दिल्ली में मंदिर बनाने की भी आलोचना की। इस प्रकार के बयानों से भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
महाराष्ट्र की सभी 288 विधानसभा सीटों पर सकाल मीडिया के सर्वे के अनुसार, 48.7 प्रतिशत जनता महाविकास अघाडी के पक्ष में और 33.1 प्रतिशत महायुति (भाजपा-शिंदे गठबंधन) के पक्ष में है। इससे स्पष्ट है कि इस बार महागठबंधन के पक्ष में माहौल बन रहा है, जो भाजपा के लिए चिंता का विषय है।
शरद पवार और अजित पवार गुट के छगन भुजबल की मुलाकात भी सवाल खड़े करती है। लोकसभा चुनावों के नतीजों से शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित) में खलबली है। इनके विधायकों को अपना भविष्य खतरे में दिखाई दे रहा है और कुछ लोग अपने-अपने दलों के मूल नेताओं (उद्धव-शरद) से सम्पर्क में हैं।
उपचुनावों की स्थिति
उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए उपचुनावों में कांग्रेस की जीत ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। नड्डा ने पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की निंदा की। भाजपा के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी कमजोरियों को पहचाने और उसमें सुधार करे।
भाजपा की बेचैनी केवल उपचुनाव वाले राज्य उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि झारखंड, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, बिहार आदि में भी देखी जा सकती है, जहां आगे-पीछे चुनाव होने हैं। भाजपा को आत्ममंथन करने की जरूरत है ताकि वह अपनी नीतियों में सुधार कर सके और भविष्य के चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर सके।