हालिया लोकसभा चुनावों में प्रभावशाली प्रदर्शन के कुछ ही समय बाद सात राज्यों में हुए विधानसभा उपचुनावों में इंडिया ब्लॉक अपनी कामयाबी से खासा उत्साहित है। विपक्षी गठबंधन में शामिल दलों ने तेरह में से दस सीटें जीत ली हैं। जहां कांग्रेस ने चार सीटें जीती हैं, वहीं पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने भी चार सीटें जीती हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने जालंधर पश्चिम सीट जीती है तो डीएमके ने तमिलनाडु में विक्रवंडी निर्वाचन क्षेत्र में जीत दर्ज की है। भाजपा को हिमाचल प्रदेश व मध्यप्रदेश में एक-एक सीट मिली है तो बिहार में एक निर्दलीय जीता है।

हालांकि, यह एक हकीकत है कि देश में लोकसभा व विधानसभा चुनावों में मतदाता अलग-अलग पैटर्न से वोट देता है। तमाम स्थानीय मुद्दे भी विधानसभा चुनाव में असर डालते हैं। लेकिन फिर भी चुनाव परिणामों की स्थिति को देखते हुए भाजपा आत्ममंथन के लिये मजबूर जरूर होगी। इसकी एक वजह यह भी है कि इस साल के अंत तक जहां हरियाणा, महाराष्ट्र व झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में भी दस विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं।

भाजपा के लिये चिंता की बात यह भी होगी कि जिस उत्तराखंड में उसकी सरकार है और हालिया लोकसभा चुनाव में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया था, वहां दो विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनावों में वह क्यों हारी। वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड व हिमाचल की जीत कांग्रेस का मनोबल बढ़ाने वाली है क्योंकि लोकसभा चुनाव में उसे दोनों राज्यों में भाजपा के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। पंजाब में आम आदमी पार्टी राज्य में सरकार होने के बावजूद लोकसभा चुनाव में तेरह में सिर्फ तीन सीटें जीत पायी थी। मुख्यमंत्री भगवंत मान के लिये यह राहत की बात होगी कि उनकी पार्टी ने उपचुनाव में सफलता हासिल की है। दूसरी ओर हिमाचल में भी मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू राहत की सांस ले सकते हैं कि चुनाव परिणामों के बाद उनकी सरकार सुरक्षित हो गयी है।

बहरहाल, पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणामों ने बता दिया कि पश्चिम बंगाल में दीदी का ही एकछत्र राज्य चलेगा। राज्य में टीएमसी ने चार सीटें जीती हैं और तीन सीटें भाजपा से छीनी हैं। वहीं तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके ने भी अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया है। बहरहाल, केंद्र में गठबंधन सरकार बनाने के तुरंत बाद आए उपचुनावों के नतीजे निस्संदेह भाजपा को असहज करने वाले ही हैं। वहीं संसद के हालिया सत्र में दमदार उपस्थिति दर्ज कराने वाले पुनर्जीवित विपक्ष के लिये उपचुनाव के नतीजे शुभ संकेत ही कहे जा सकते हैं। हालांकि, विपक्षी खेमे के लिये यहां आत्मसंतुष्टि की गुंजाइश ज्यादा नहीं है क्योंकि भाजपा भारी बाधाओं के बावजूद चुनाव जीतने का दमखम जरूर रखती है।

बहरहाल, यह भाजपा के लिये भी ईमानदारी से आत्ममंथन करने का वक्त है ताकि उसे पता हो सके कि पार्टी की नीतियों में कहां चूक हो रही है। साथ ही यह भी कि उसमें कैसे सुधार किया जा सकता है। बहरहाल, इन चुनाव परिणामों का एक पहलू यह भी है कि मतदाताओं ने उत्तराखंड, हिमाचल व पंजाब में दलबदल करने वाले नेताओं को सबक भी सिखाया है। उत्तराखंड की चर्चित बद्रीनाथ सीट को कांग्रेस बचाने में कामयाब रही है। उसके सिटिंग एमएलए ने पाला बदलकर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार जनता ने उन्हें नकार दिया।

हिमाचल प्रदेश में रोचक परिदृश्य उभरा है जहां देहरा सीट पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू की पत्नी चुनाव जीत गई हैं। प्रदेश में यह पहली बार होगा कि मुख्यमंत्री व उनकी पत्नी सदन में एक साथ होंगे। वहीं अब चालीस विधायक होने से सुक्खू सरकार पर बना वह संकट टल गया, जो कुछ माह पूर्व राज्यसभा चुनाव के वक्त पैदा हो गया था। हां, इतना जरूर है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज नेता का गढ़ माने जाने वाले छिंदवाड़ा की अमरवाड़ा सीट भाजपा ने छीन ली है।

बहरहाल, हरियाणा, महाराष्ट्र व झारखंड के आसन्न विधानसभा चुनाव व यूपी के उपचुनावों के दृष्टिगत हालिया उपचुनाव परिणाम भाजपा को विचलित करने वाले जरूर हैं।